Tuesday, December 14, 2010

दिल इक ऐसा गुल्लक...



किसने जोड़े हैं गिन गिन के.
तस्वीरों के पीछे तिनके.

 और भला क्या है आँखों में,
कुछ उम्मीदें अच्छे दिन के.

 जो सौदा आँखों का, उसमे
कहाँ बही-खाते धन-ऋण के.

 दादी और नानी की कहानी,
बुद्धू-बक्सा ले गया  छीन  के.

 अपने हिस्से के ही दाने,
चिड़िया ले जाती है  बीन के.

 वो अक्सर भटके मिलते हैं,
दुनिया पीछे चलती जिनके.

 अब ना दरख्तों तले गाँव में,
गूंजा करते बोल ता-धिन के.

 दिल इक ऐसा गुल्लक जिसमे,
सिक्के जमा बीते पल-छिन के.

: राकेश जाज्वल्य. १४.१२.१०
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