Wednesday, February 24, 2010

जब फूल खिलते......नन्ही राशि की नई रचना.


नन्ही राशि की नई रचना प्रस्तुत है, राशि ने कई दिनों पहले इसे लिखा था, आज उसने याद दिलाया की अभी तक मैंने इसे पोस्ट नहीं किया है। तो लीजिये आज मौका मिल ही गया.
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जब फूल खिलते...

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जब फूल खिलते
हमको अच्छे लगते।
तितलियाँ आतीं
फूल पर बैठती,
छोटी- छोटी कलियाँ
सुंदर फूल बनतीं।
जब चिड़ियाँ आतीं,
हम उसे
चाँवल के दाने देते।
जब छोटे फूल खिलते,
हम उन्हें तोड़ते नहीं।
जब फूल खिलते
हम को अच्छे लगते.
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: निर्झरा राशि.



Wednesday, February 17, 2010

शायद.........nai gazal.

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तेरे ख्यालों में आया जो, मैं नहीं शायद।
रहा भटकता मगर मैं भी वहीँ-कहीं शायद.

रहा है शौक, तेरी ही गली का बचपन से,
अपने कदमो से मगर मैंने कहा नहीं शायद.

किसी का ख्वाब था या फिर कोई सितारा था,
ऐसा टूटा कि फिर मिला वो कहीं नहीं शायद.

यही मंजूरे -खुदा था तो क्यूँ मिले थे हम,
सारी मर्ज़ी मेरे खुदा की, सही नहीं शायद।

कई सदियों से जो पत्ता रुका था डाली पर,
तेरे हाथों मिलेगी उसको अब जमीं शायद।
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: राकेश जाज्वल्य.



Wednesday, February 10, 2010

इस पतझड़ मे / is patjhad me

राहों में उड़ते
पीले-भूरे पत्ते,
तेज हवाएँ,
धुल भरी आंधियां,
चुभती धूप,
दिनों-दिन
बढती गर्मी,
सुने रास्ते,
लम्बे दिन,
उमस दोपहरी,
अनबुझी प्यास,
ठंडी छाँव,
मीठा पानी,
अलसाया अलसाया मन....
सावन और शिशिर की तरह
अब इस पतझड़ में भी,
तेरी याद ने,
कितने रूप धरे है ...जानाँ.
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rahon me udte
pile-bhure patte,
tej hawayen,
dhul bhari aandhiyan,
chubhti dhoop,
dino.n-din
badhti garmi,
sune raste,
lambe din,
umas dopahri,
anbujh pyaas,
thandhi chhao.n,
meetha pani,
alsaaya alsaaya man...
sawan aur shishir ki tarah
ab is patjhad me bhi,
teri yaad ne,
kitne rup dhare hai.n...jaana.n.
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: राकेश जाज्वल्य.