Sunday, March 13, 2011

दिल का ये अफ़साना......

दिल का ये अफ़साना जी.
सबको नहीं सुनाना जी.


तन्हाई में गूंजा करता
है, यादों का गाना जी.


कच्चा आँगन, पक्का पीपल,
कहाँ वो दादा-नाना जी.


बचपन में चोटी खिंची थी,
दिल उसका हर्ज़ाना जी.


सुबह-सुबह गर शाम मिले
तो, आशीषें ले जाना जी.


अच्छा है जो अखियाँ भीगीं,
नमी में उगता दाना जी.


आँसू बहते दुःख में, सुख में,
अच्छा ताना- बाना जी.


: राकेश जाज्वल्य. १२.०३.२०११.
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Thursday, March 10, 2011

फूंक.........(त्रिवेणी)

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हौले से नमी वाली इक फूंक मारें.
चाँद की आखों से चलो धूल झारें.

अब चेहरा तुम्हारा कुछ साफ़ नज़र आता है.

: राकेश जाज्वल्य. 10.03.2011
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