Monday, June 29, 2009

उसकी बातों में / uski baaton me

उसकी बातों में कुछ ऐसा कमाल होता है,
रंग मौसम के भी गालों का लाल होता है.

उसकी पलकों पे बदलती है यूँ सदियाँ पल में,
मेरी आँखों में क्यूँ सदियों सा साल होता है,

जब भी देती है ज़वाब हँस के मुझको, ऐसा लगे
जैसे हर बार ग़लत मेरा सवाल होता है.

इक दरिया में जब डूबा करते हैं दोनों,
गहरे पानी में भी अक्सर उछाल होता है.

उसका तमन्नाई है, इस दिल को मै समझाऊं क्या,
जो भी मिलता है बुरा उसका हाल होता है.

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Uski baton se kuchh aisa kamal hota hai,
rang mausam ke bhi gallon ka lal hota hai.

Uski palakon pe badalti hai yun sadiyan pal me,
Meri aankhon me kyun sadiyon sa saal hota hai,

Jab bhi deti hai jawab hans ke mujhko, aisa lage
jaise har bar galat mera sawal hota hai.

Ik dariya me jab duba karte hain dono,
Gahre panni me bhi aksar uchhal hota hai.

Uska tamnnai hai, is dil ko mai samjhaun kya,
Jo bhi milta hai bura uska haal hota hai.

: राकेश जाज्वल्य
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Saturday, June 27, 2009

अलग / Alag - इक नई ग़ज़ल

अलग
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आँखों की तेरी हर बात अलग,
जैसे की सुरमई रात अलग.

है लबों को लब से जुम्बिशें,
कैसे होगा ये साथ अलग.

मुझे मौत गवारा है, लेकिन
देना मुझको आघात् अलग.

मेरी धड़कन पर है नाम तेरा,
तू माने ना, ये बात अलग.

तू ज़हर अगर है हुआ करे,
मै फूल हूँ मेरी काट अलग.
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Alag
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Ankhon ki teri har bat alag,
jaise ki surmai rat alag.

Hai labon ko lab se jumbishen,
kaise hoga ye sath alag.

Mujhe maut gawara hai, lekin
dena mujhko aaghaat alag.

Meri dhadkan par hai nam tera,
tu mane na, ye bat alag.

tu zahar agar hai hua kare,
mai phul hun meri kat alag.
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: राकेश जाज्वल्य

Friday, June 26, 2009

गौरैया- एक छोटी सी रचना अकाल पर

गौरैया- एक छोटी सी रचना अकाल पर
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सूखे सारे ताल- तलैया,
कब से प्यासी है गौरैया.

खेतों में नहीं फसलें, दाने
कहाँ से लाएगी गौरैया.

धरती सुखी, पेड़ भी सूखे,
आँखों से गीली गौरैया.

दूर देश से आते बादल,
दिल को समझाती गौरैया.

खारे जल से मीठा सपना,
सींचा करती है गौरैया.
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Gauraiya- Ek chhoti si rachna akaal par
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sukhe sare taal- talaiya,
kab se hai pyasi gauraiya.

Kheton me nahi Faslen, dane
Kahan se layegi gauraiya.

Dharti sukhi, ped bhi sukhe,
Aankhon se gili gauraiya.

Dur desh se aate badal,
Dil ko samjhati gauraiya.

khare jal se mitha sapna,
sincha karti hai gauraiya.

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: राकेश जाज्वल्य

Thursday, June 25, 2009

अम्मा / Amma

 अम्मा बड़ी कमाल है......
 
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सब की छोटी-छोटी,सारी बातों का ख्याल है,
मुझको जादूगर सी लगती, अम्मा बड़ी कमाल है.

उसकी आँखों का सूरज मुझको गीला सा लगता है,
उसके माथे की चंदा का रंग भी सुर्ख लाल है.

मैंने अक्सर देखा है वो छुप के रोया करती है,
उसका पल्लू जैसे कोई सतरंगी रुमाल है.

चिमटा बेलन लेकर वो हम सब को डांटा करती है,
बच्चे कुछ खाते ही नहीं है, उसको बड़ा मलाल है.
 
रिश्तों के चादर की सारी सलवट वो सुलझाती है,
तनी हुई डोरी पर अम्मां सधी हुई सी चाल है.
 
हँस-हँस कर जो पूरा करती सब की हर फरमाईशें,
उसके भी कुछ सपने होंगे,घर में किसे ख्याल है.
 
: राकेश बनवासी जाज्वल्य
 
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Sab ki chhoti-chhoti sari baton ka khyal hai,
Mujhko jadugar si lagti, amma badi kamal hai




Uski aankho ka suraj mujhko gila sa lagta hai,
Uske mathe ki chanda ka rang bhi surkh lal hai.




Maine aksar dekha hai vo chhup ke roya karti hai,
Uska pallu jaise koi satrangi rumal hai.




Chimta belan lekar vo to sab ko data karti hai,
Bachhhe kuchh khate hi nahi hai usko bada malal hai.




Rishtey ki chadar ki sari salvat vo suljhati hai,
Tani hui dori par amma sadhi hui si chaal hai.
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Hans hans kar jo pura karti sab ki har farmaishen,
Uske bhi kuchh sapne honge ghar me kise khyal hai.


: Rakesh Jajvalya.

Tuesday, June 23, 2009

सिगरेट के कश का आखिरी गुल / Cigarette ka aakhiri gul

Cigarette ke kash ka aakhiri gul hai,
Dubta suraj bhi kya beautiful hai.

Chehre pe shikan hain barso ke,
sadiyon ki pairon me dhul hai.

Mohabbat ke har afsane me,
teri meri vahi bhool hai.

Tu aur tera gam mujhko,
Kubul hai, kubul hai, kubul hai।
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सिगरेट के कश का आखिरी गुल है,
डूबता सूरज भी क्या ब्यूटीफुल है।

चेहरे पे शिकन है बरसों के,
सदियों की पैरों में धूल है।

मोहब्बत के हर अफ़साने में,
तेरी- मेरी वही भूल है।

तू और तेरा ग़म मुझको,
कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है।

: राकेश जाज्वल्य




मौसम हरा भरा

मौसम हरा भरा देखो,
इक हँसता चेहरा देखो।

सूरज भी लगता चंदा सा ,
कोहरा इक सुख का देखो।

उसके कानों की बाली में,
मुझको कहीं फंसा देखो।

प्रेम यहाँ अपराध हुआ है,
भीतर भय भरा देखो।

आँच में दमका करता है,
उसका प्यार खरा देखो।

जहर मिले जब मुस्कानों में,
खुद में इक् मीरा देखो।

: राकेश जाज्वल्य

Monday, June 22, 2009

भीड़ में इक चेहरा पहचाना


भीड़ मे इक चेहरा पहचाना कैसा लगता है।
मुद्दत मे घर लौट कर आना कैसा लगता है।

उनके आने की उम्मीदें हम भी देखा करते हैं,
वो क्या जानें, हर बार बहाना कैसा लगता है।

आँखों में, दिल में, धड़कन में, बस उसकी ही बातें है,
रग -रग में बस एक फ़साना कैसा लगता है।

नए दौर में किससे पूछें, बीते दिनों की बातें हैं,
किसी के वादों पर मर जाना कैसा लगता है।

आँगन में है अमलताश, गुलमोहर भी, कचनार भी,
उस पर अब उनका शरमाना, कैसा लगता है.

मेरा होना क्या है तुम्हारे बिना.


मेरा होना क्या है तुम्हारे बिना।
जैसे सूनी  आँखे बिना बात के ,
जैसे सूना  पथ बिना साथ के।
जैसे बादल कोई बिना नमी के,
जैसे पौधा कोई बिना जमीं के.
मेरा रोना क्या है तुम्हारे बिना.
एक पंखुडी जो फूल पर रही नहीं,
एक बात जो होठों ने कही नहीं,
एक चाँद अधूरा फ़लक पर आया नहीं,
एक ख्वाब अधूरा पलक पर छाया नहीं,
मेरा खोना क्या है तुम्हारे बिना।
थी ख़ुशी कोई जब पास थे तुम ,
थी हसीं कोई जब साथ थे तुम,
थी बात कोई सब बातों में,
थी चाँदी- चाँदी रातों में...
मेरा सोना क्या है तुम्हारे बिना.

मेरा होना क्या है तुम्हारे बिना.
:राकेश जाज्वल्य, 29.04.2009

जब जिंदगी में सच्चे यारों की बात होगी

जब जिंदगी में सच्चे यारों की बात होगी,
यह आदमी के सिर्फ ख्यालों की बात होगी।

तुझे ढूंढ़ता फिरता है जो, नाकाम ग़र हुआ,
ता-उम्र फिर तो सिर्फ प्यालो की बात होगी।

निगाह ना मिला सका अपने ही रूह से,
कैसे किसी से रु-ब-रु सवालों की बात होगी।

अहसास खुशनुमा सा सताता है रात भर,
कल दिन फिर निकलेगा उजालों की बात होगी।

महफ़िल में होंगे चर्चे, जब भी किसी के प्यार के,
तेरे ही करतब- कमालों की बात होगी.

: राकेश जाज्वल्य 22.06.2009

Monday, June 1, 2009

पहली बारिश


आज मुझे बारिश की
पहली बूंदों ने छुआ है,
मेरा दिल कह रहा है -
ये तेरी ही दुआ है.
भीगे पेड़ ,भीगी जमीं,
भीगा बदन सारा है,
है शोर ये havaon का,
या तुमने मुझे पुकारा है.