अभी ले मज़ा तूफानों का, के साहिल दूर है।
कुछ हौसलों की बात कर, के मंजिल दूर है।
तू भी सिक्कों की खनक सी मीठी बात कर,
कड़वे सच से जीत की हर महफ़िल दूर है।
उस तरफ दीवार के है दुनियां प्यार की,
जरा पँख तू मजबूत कर, के कातिल दूर है।
तू उठा कर आग सूरज से जला अंगीठियाँ,
दिन हैं बारिश के मगर अभी बादल दूर है।
देख के ये दिन दुबारा आयेंगे अब फिर नहीं,
तू ना रुक कल के लिए, के हासिल दूर है।
: राकेश जाज्वल्य।
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यहाँ हैं.. मेरी ग़ज़लें और कवितायेँ...... कितनी भी कोशिश करें, चाहें..पी लें..... सूखती नहीं मगर..खारे पानी की झीलें.
Saturday, July 31, 2010
Wednesday, July 28, 2010
बदरी फिर घिर आई है.....(गीत)
बदरी फिर घिर आई है।
कैसी उदासी छाई है.............बदरी.......
फिर सावन नैनों से बरसा।
फिर दिल तेरी याद में तरसा।
याद तुम्हारी लाई है.............बदरी........[1]
रुत गीली, पलकें गीली हैं।
बूंदें भी जलती तीली हैं।
रिमझिम आग लगाई है.............बदरी.....[2]
इक-इक दिन आँखों में काटे।
दरवाज़ों से सुख -दुःख बांटें।
तेरे बिन तन्हाई है..............बदरी.....[3]
सोर- संदेसे भी तुम भूले।
नागन से डसते हैं झूले।
सुनी मेरी अमराई है.......बदरी.......[4]
मैं ना अब मैं रही पिया जी।
मेरा ना अब मेरा ही जिया जी।
ये तेरी परछाई है............बदरी.....[5]
अब जब तुम घर को आओगे।
वापस ना यूँ जा पाओगे।
ऐसी कुण्डी मंगाई है.........बदरी....[6]
बदरा फिर घिर आई है।
कैसी उदासी छाई है.............बदरी...
* राकेश जाज्वल्य
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कैसी उदासी छाई है.............बदरी.......
फिर सावन नैनों से बरसा।
फिर दिल तेरी याद में तरसा।
याद तुम्हारी लाई है.............बदरी........[1]
रुत गीली, पलकें गीली हैं।
बूंदें भी जलती तीली हैं।
रिमझिम आग लगाई है.............बदरी.....[2]
इक-इक दिन आँखों में काटे।
दरवाज़ों से सुख -दुःख बांटें।
तेरे बिन तन्हाई है..............बदरी.....[3]
सोर- संदेसे भी तुम भूले।
नागन से डसते हैं झूले।
सुनी मेरी अमराई है.......बदरी.......[4]
मैं ना अब मैं रही पिया जी।
मेरा ना अब मेरा ही जिया जी।
ये तेरी परछाई है............बदरी.....[5]
अब जब तुम घर को आओगे।
वापस ना यूँ जा पाओगे।
ऐसी कुण्डी मंगाई है.........बदरी....[6]
बदरा फिर घिर आई है।
कैसी उदासी छाई है.............बदरी...
* राकेश जाज्वल्य
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Monday, July 12, 2010
चाँद की झूठी कसमे........(त्रिवेणी.)
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उनके रूठे-रूठे दिल को यूँ अक्सर बहलायें हम।
सच्चे इश्क की ख़ातिर चाँद की झूठी कसमें खाएं हम।
खुदा मुआफ़ करे ..... चाँद के चेहरे के लिए।
* राकेश जाज्वल्य।
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उनके रूठे-रूठे दिल को यूँ अक्सर बहलायें हम।
सच्चे इश्क की ख़ातिर चाँद की झूठी कसमें खाएं हम।
खुदा मुआफ़ करे ..... चाँद के चेहरे के लिए।
* राकेश जाज्वल्य।
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मुहब्बत हो......
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बात मुश्किल, मगर हो जाए, ...मुहब्बत हो।
कुबूल दिल की दुआ हो जाए, ...मुहब्बत हो।
नफरतों का ये सफ़र क्यूँ हो उमर भर जारी,
तल्खियाँ दूर कहीं खो जाए, ....मुहब्बत हो।
ज़ख्म कितने भी लगे हों, मगर ख़ुदा मेरे,
बह के आँसू दवा हो जाए, ....मुहब्बत हो।
हर कदम पर कोई नेमत हो सबकी झोली में,
दुःख जो आये कहीं खो जाए,...मुहब्बत हो।
चाहे काँटे कहीं बरसे हों, किसी के लब से,
फूल बरसे जिधर वो जाए,...मुहब्बत हो।
बात मुश्किल, मगर हो जाए, ...मुहब्बत हो।
कुबूल दिल की दुआ हो जाए, ...मुहब्बत हो।
* राकेश जाज्वल्य ११।०७।२०१०।
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बात मुश्किल, मगर हो जाए, ...मुहब्बत हो।
कुबूल दिल की दुआ हो जाए, ...मुहब्बत हो।
नफरतों का ये सफ़र क्यूँ हो उमर भर जारी,
तल्खियाँ दूर कहीं खो जाए, ....मुहब्बत हो।
ज़ख्म कितने भी लगे हों, मगर ख़ुदा मेरे,
बह के आँसू दवा हो जाए, ....मुहब्बत हो।
हर कदम पर कोई नेमत हो सबकी झोली में,
दुःख जो आये कहीं खो जाए,...मुहब्बत हो।
चाहे काँटे कहीं बरसे हों, किसी के लब से,
फूल बरसे जिधर वो जाए,...मुहब्बत हो।
बात मुश्किल, मगर हो जाए, ...मुहब्बत हो।
कुबूल दिल की दुआ हो जाए, ...मुहब्बत हो।
* राकेश जाज्वल्य ११।०७।२०१०।
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Thursday, July 8, 2010
काला जादू बस्तर का.........
इक सल्फी, इक काली मैना और इक दादू बस्तर का.
तेरी आँखों में है कोई काला जादू बस्तर का.
अक्सर यूँ चलने लगता हूँ इश्क के दुर्गम जंगल में,
जैसे कोई जंगली भैंसा हुआ बेकाबू बस्तर का.
इमली, आम, करील, चिरौंजी, तेंदू, नीम सी लगती तुम,
और तुम्हारे सुर्ख लबों पर महुआ- काजू बस्तर का.
बिना तुम्हारे दिन यूँ गुजरा, जैसे महानगर के दिन,
शाम ढले पर आया मौसम, मेरे बाजू बस्तर का.
तेरी आँखों में है कोई काला जादू बस्तर का.
अक्सर यूँ चलने लगता हूँ इश्क के दुर्गम जंगल में,
जैसे कोई जंगली भैंसा हुआ बेकाबू बस्तर का.
इमली, आम, करील, चिरौंजी, तेंदू, नीम सी लगती तुम,
और तुम्हारे सुर्ख लबों पर महुआ- काजू बस्तर का.
बिना तुम्हारे दिन यूँ गुजरा, जैसे महानगर के दिन,
शाम ढले पर आया मौसम, मेरे बाजू बस्तर का.
: राकेश जाज्वल्य. ०७.०७.२०१०.
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१. सल्फी = बस्तर में पाए जाने वाले सल्फी के पौधे से हल्के नशे वाला तरल पेय- " सल्फी " प्राप्त होता है.
२. काली मैना = बस्तर में पाई जाने वाली काली मैना मनुष्यों की आवाज की हु-बहू नक़ल कर लेती है.
३. दादू = युवा बस्तरिया के लिए इक संबोधन (nick name.)
४. करील = बरसात में बांस की नई कोपलें, इसके नर्म मुलायम हिस्से को पकाकर खाया जाता है.
५. चिरौंजी = "चार" नामक फल का भीतरी कोमल भाग. इसे खीर में डाला जाता है. महंगा और पौष्टिक.
६. तेंदू = इक मीठा फल.
७. महुआ और काजू = दोनों ही फल से शराब बनाई जाती है.
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Thursday, July 1, 2010
आवाज से परे......
गूंजेगी एक धुन यहाँ अब साज़ से परे।
मुझको सुनोगे तुम अगर आवाज़ से परे।
हम आ बसेंगे दिल में तेरे, जैसे ख़ामोशी से,
बसता है ख़्वाब आँख में अहसास से परे।
तुमको नहीं यकीन अगर मेरी वफ़ाओं का,
बस छू कर देखना मुझे तुम साँस से परे।
होगा असर झलक का मेरे, दिल पर इस कदर,
सज़दा करोगे गलियों में, तुम लाज से परे।
ठंडी हवा के झोंके सा कुछ कह गया हूँ मैं,
सोचो तो बात पाओगे, अल्फाज़ से परे।
: राकेश जाज्वल्य ०१/०७/२०१०
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मुझको सुनोगे तुम अगर आवाज़ से परे।
हम आ बसेंगे दिल में तेरे, जैसे ख़ामोशी से,
बसता है ख़्वाब आँख में अहसास से परे।
तुमको नहीं यकीन अगर मेरी वफ़ाओं का,
बस छू कर देखना मुझे तुम साँस से परे।
होगा असर झलक का मेरे, दिल पर इस कदर,
सज़दा करोगे गलियों में, तुम लाज से परे।
ठंडी हवा के झोंके सा कुछ कह गया हूँ मैं,
सोचो तो बात पाओगे, अल्फाज़ से परे।
: राकेश जाज्वल्य ०१/०७/२०१०
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