Monday, January 30, 2012

फिर नैनों ने चाल चली है.... (गीत)

फिर नैनों ने चाल चली है,
हो सके तो बचना.
तू ना फंसना चालों में
दिल तू ना फंसना...
तू ना फंसना धोखे में
दिल तू ना फंसना....

१.
हल्की- हल्की बूंदा-बांदी,
भीगा-भीगा मौसम.
गाल के गुलाबों पे
उगते- ढलते शबनम.
कारी- कजरारी बतियों से..
चाहे तुझको डसना....तू ना फंसना...
२.
फेंकें ये निगाहें,
कभी हँस के बुलाएँ.
गोल- मोल बोलें,
कभी आँखें दिखाएँ.
इनके सारे नखरे झूठे..
कोई कहानी सच-ना....तू ना फंसना...
३.
कितने प्यारे-प्यारे लगें,
नैनों के तमाशे.
चाशनी में शक्कर की,
नीम के बताशे.
इनके तिरछे बोल नशीले..
सोच-समझकर चखना....तू ना फंसना...

फिर नैनों ने चाल चली है,
हो सके तो बचना.
तू ना फंसना चालों में
दिल तू ना फंसना.

: राकेश जाज्वल्य. २२.०१.२०१२.

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Saturday, January 21, 2012

नम निगाहें लिए...... मुस्कुराती रही...

नम निगाहें लिए...... मुस्कुराती रही.
इक सदा अनसुनी.... याद आती रही.

अब कहाँ जाऊं मैं ....अपनी खताएँ लिए,
पहले सब गलतियाँ... माँ छिपाती रही.

बिगड़े मौसम में भी... लहरों पर बढ़ चली,
कश्ती तूफ़ान को..... आजमाती रही.

हमसफ़र बन के वो... साथ जब भी चले,
राह खुद मंजिलों....को दिखाती रही.

बात बढ़ भी गयी..... बात ही बात में,
बात ही बात में...... बात जाती रही.

ख्वाह म'ख्वाह पड़ गया.... इश्क़ मेरे गले,
ख्वाहिशे- ख़ुदकुशी.. थी जो जाती रही.

* राकेश जाज्वल्य.
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