Monday, June 28, 2010

आँखों से अश्कों की मुलाकात का मौसम....

है आँखों से अश्कों की मुलाकात का मौसम।
जज्बात का मौसम है ये बरसात का मौसम।

काज़ल निकाल आँखों से बादल क्यूँ रंग दिया,
छाने लगा है दिन में भी अब रात का मौसम।

मैंने सुना है तुम भी हो शामिल बहार में,
आओ इधर कि बदले कुछ हालात का मौसम।

खेतों में लहलहा उठें अम्मी की दुआएं,
अब के ख़ुदा तू भेज करामात का मौसम।

बरसे घटायें यूँ कि हो बस प्यार हर तरफ,
हर बूंद में हो उसकी सौगात का मौसम।

अपनों की शिकायत ना करो गैर की गली,
जारी रहे हमेशा ख़त-ओ-बात का मौसम।
* राकेश जाज्वल्य।
***************************

Friday, June 25, 2010

इक नशा सा तारी है..

इक नशा सा तारी है।
इश्क बुरी बीमारी है।

ख़ुदा कहाँ इंसानों जैसा,
उसकी भी लाचारी है।

जिस्मों को क्या गाली देना,
रूह जहाँ बाज़ारी है।

मर कर तो कुछ हल्का हो लूँ,
तुझ बिन हर पल भारी है।

प्यार में जी के देख लिया है,
अब मरने की बारी है।

चाँद को कल इक फूल दिया था,
तब से वो आभारी है।

जब से तुमने मुड़कर देखा,
दिल का धडकना जारी है।

इश्क तो होगा होते- होते,
पहली शर्त तो यारी है।

* राकेश जाज्वल्य २५।०६।१०।
-----------------------------

Thursday, June 24, 2010

इक पूरी ग़ज़ल चाँद पर......

जब भी छत पर आया चाँद।
देख हमें शरमाया चाँद।

पूछा मैंने कहाँ मिलना है,
उसने मुझे दिखाया चाँद।

देख तेरी चंदा सी सूरत,
उसने कहीं छिपाया चाँद।

सोने को तो दिन है पूरा!
कहकर रात जगाया चाँद।

एक तुम्हारे वादे पर ही,
मैंने मांग सजाया चाँद।

झील का पानी छलका-छलका,
किसने वहां डुबोया चाँद।

सुख-दुःख सा घटता बढता है,
अपना कभी पराया चाँद।

निकल चली फिर लाँघ देहरी,
सूरज ने भरमाया चाँद।

आँखें बरसती रहीं रात भर,
तेरे ग़म ने पिघलाया चाँद।

सुनो सजन! जल्दी घर आओ,
मेरी गोद में आया चाँद ।
* rakesh jajvalya.
............................... .......आगे की पंक्तियाँ अनिल "मासूम" जी की कलम से॥

बरसों बाद किसी ने आकर,
हम को खूब सुनाया चाँद।

लोग ये कहते ऊबड़-खाबड़,
तुम ने खूब सजाया चाँद।

मुझसे खफ़ा कल से बैठा था,
तुम ने रात मनाया चाँद।

चंपा ने रोटी की सूरत,
रात को घर पे खाया चाँद।

मैं कल जब छत पे ना आया,
मेरी छत पे आया चाँद।

चाँद चाँद तभी लगा जब,
इस कागज़ पर आया चाँद।

तुम कहते हो ग़ज़ल लिखी है,
हम ने तो बस पाया चाँद।
--------------------------

Thursday, June 17, 2010

बेसबब सी बातों पर क्यूँ,................

बेसबब सी बातों पर क्यूँ, बेसबब हम लड़ पड़े थे.
थोड़ी दूरी पर ही जबकि, खुशियों के अवसर खड़े थे.

लाख रूठा ये ज़माना, खुद से पर रूठे ना हम,
थी अगर अड़ियल ये दुनिया, हम भी तो चिकने घड़े थे.

इक-इक दिन अब धीरे-धीरे, उम्र छोटी हो रही है,
जिस दिन हम पैदा हुए थे, उस दिन हम सबसे बड़े थे.

तुमने जो ख्वाबों के जेवर, पहने अपनी आँखों में,
उनमे उम्मीदों के कितने, चमकीले मोती जड़े थे.

चाँद बन के तुम कभी, जानां कभी जाना नहीं,
फूल बन कर चाहे तेरे जुड़े में हम जा पड़े थे.

उम्र भर रिसता है दिल से, टूटे रिश्तों का लहू,
यादों के टुकड़े नुकीले सीने में गहरे गड़े थे.

* राकेश जाज्वल्य
---------------------------------------------

Wednesday, June 16, 2010

यूँ तेरा नाम.........

यूँ तेरा नाम ज़माने से छिपाया हमने,
सी लिए होंठ, हर इक लफ्ज़ मिटाया हमने।

हैं तलबगार मगर तुझको ना चुरायेंगे,
ऐसे पाया भी तो सच कहिये क्या पाया हमने।

बदली बदली सी है बहती हवा ज़माने की,
इसमें देखा नहीं अपना कहीं साया हमने।

अब भी है प्यार मुहब्बत, बढ़के सांसों से,
कभी सोचा ही नहीं तुमको पराया हमने।

ये चाँद कब से है खिड़की पे आकर अटका,
अपना चेहरा ना कभी उससे हटाया हमने।

तुम भी आओ तो ये दुनिया ज़रा मुकम्मल हो,
यूँ इसे सब की हँसी से है सजाया हमने।

* राकेश जाज्वल्य.........१७।०६।२०१०।
****************************

Monday, June 14, 2010

तुमने जिनको छू लिया.....

हम लकीरों से उलझकर जब कभी बेघर हुए।
चल के तपते पत्थरों पर, चांदनी के दर हुए।

उनकी आँखों से छलक आयीं दो बूंदें गाल पर,
ख़्वाब उनके भी लो अब, नमकिनियों से तर हुए।

यूँ तो साहिल पर पड़े थे, सदियों से पत्थर कई,
तुमने जिनको छू लिया वो टुकड़े संग-मरमर हुए।

बीते बरसों भी कहा था माँ ने की अब लौट आ,
ख़्वाब शहरों के मगर मेरी राह के विषधर हुए।

याद करते ही तुझे ग़ज़लें सी उभरीं आँख में,
कोरे कागज़ थे कभी, अब तितलियों के पर हुए।

आवाजाही बढ गयी लो चाँद की गलियों में फिर,
जो सितारों के ठीये थे, आशिकों के घर हुए।

* राकेश जाज्वल्य.
------------------------------------------

हलचल..............

फिर आज कुछ हलचल सी है, इन आँखों की झील में,
फिर पैर डुबोये ख़्वाबों ने, पलकों पे बैठकर।

ये ख्वाब हैं या आंसुओं के छलकने का सबब कोई।

* राकेश जाज्वल्य
-------------------------------------------

Monday, June 7, 2010

पुकार.....

चलो उन पर्वतों के ऊपर...
सबसे ऊपर जहाँ सिर्फ आसमान है,
और या फिर खुदा है,
आसमानों के भी ऊपर.
अब पुकारों उन्हें,
उम्मीद है....
यहीं हो पायेगी उनसे बातें,
मांगों जो भी चाहते हो,
मांगों जिसे भी चाहते हो,
मांगों फूल, खुशियाँ, प्यार,
ताजी हवा, समय पर बारिश,
मांगों बच्चों की मुस्काने,
बच्चियों की सुरक्षा भी मांगों.
मांगों.......
सच कहने की हिम्मत.
ताकत मांगों.......
जांत-पांत, भेद- भाव दूर करने के लिये.
आने वाले बच्चों के लिये
सुनहरा कल मांगों,
थोड़ी दुआएं भी मांग लो..
आज के बुजुर्गों के लिए.
कुछ मत छोडो......
सब मांग लो...
और लौटो....खाली हाँथ.
कमबख्तों...
वो सारी चीजें
जो तुम खुद कर सकते हो यहाँ..
इसी जमीं पर.
उसके लिये तो...खुदा भी नहीं सुनेगा तुम्हारी.

* राकेश जाज्वल्य
===================


Friday, June 4, 2010

मोहलत .....


*******
नींद भी, ख्वाब भी, है रात भी उसी की ,
चाहेगा जब भी वो, ये आँखें मूंद लूँगा मै.

काँधों पे अपने बस मुझे इक नींद की मोहलत देना...
--------------------------------------------------
: राकेश

Tuesday, June 1, 2010

चाँद की भी इमेज है मुझ-सी...

बहती आँखों से बयाँ होता है.
दर्द जब दिल की जुबाँ होता है.

जब भी जी चाहे, ख़ुदकुशी कर लो,
भीतर इक गहरा कुआँ होता है.

जब सुलगती है ग़ज़ल सी दिल में,
सर्द मौसम में धुआँ होता है.

अपने चेहरे पे बारहा मुझको,
तेरी आँखों का गुमाँ होता है.

रूह की साँस चलती रहती है,
जिस्म का क्या है, धुआँ होता है.

चाँद की भी इमेज है मुझ-सी,
सच भी कह दे तो, मुआँ होता है.

: राकेश जाज्वल्य
-------------------------