Saturday, December 24, 2011

कुछ भी नहीं......

बस इक कली है प्याज की,
ये प्यार.... और ये ज़िन्दगी..
 

परत-दर- परत.... और कुछ भी नहीं.

* राकेश. २४.१२.२०११.
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Saturday, November 12, 2011

तुझ को पाने का ज़रिया है.

तुझ को पाने का ज़रिया है.
खुद को भी यूँ याद किया है.

था दरिया में चाँद कल तलक  
आज चाँद में इक दरिया है.

साँझ अगरबत्ती-सी महकी,
रात भी ईक जलता दिया है.

पँख फैलाये..... नन्हे पंछी,
सोच रहे हैं... अंबर क्या है.

तुमसे मिलकर दिल ने सोचा,
अच्छी है..... जैसी दुनिया है.

देर से लौटूं..... कान उमेठे.
दादी- सी.... मेरी बिटिया है.

याद की चादर ओढ़ के जगना, 
तुझ बिन सोने से बढ़िया है. 

: राकेश जाज्वल्य. 11.11.11.
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Sunday, November 6, 2011

दो पंक्तियाँ...

जान ले लेती बेरुखी तुम्हारी.. चैन तो मिलता,
मुस्कुरा के जो देखा तुमने.. अधमरा कर दिया.


******* राकेश. १९.१०.२०११ *********

Saturday, October 15, 2011

माँ...

तेज धूप में
एक टुकड़ा बादल,
मेरे साथ-साथ
चलता रहा.

माँ आसमाँ से भी
मुझ पर,
दुआओं का आँचल
डाले रही.


:राकेश. ०९.०५.११
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Tuesday, October 11, 2011

दिन फिर बीता....

दिन फिर बीता.
रीता- रीता.

संग-संग सूखे,
नयन, सरिता.

रात
की  जुल्फें,
चाँद ka फीता.

इश्क़ में एक- 
कुरान ओ गीता.


दिल जब जीते,
तब जग जीता.

मन की करनी,
काम सुभीता. 
 


 राकेश जाज्वल्य. 
०७.१०.२०११ 
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Friday, October 7, 2011

और मेरे करीब आता गया...

और मेरे करीब आता गया.
वो मुझे जितना आज़माता गया.

उसको जीने का हुनर आता था,
वो जो दुनिया से मुस्कुराता गया.

ईद की उसको साल भर खुशियाँ,
जो गले मिल के दिल मिलाता गया.

ये हकीक़त थी, आँख थी मेरी,
ख़्वाब लेकिन वही दिखाता गया.

हाँथ उसके कभी ना खाली रहे,
जो दुआओं से घर सजाता गया.

ये मेरा रब ही जानता है के,
किसकी गलती से अपना नाता गया.

उसका चेहरा चाँद बन बन कर,
ज़हनो दिल मेरा जगमगाता गया.

: राकेश. ३०.०८.११.--------------------------

Thursday, August 25, 2011

खुद से मिलना भी बात भी करना.

खुद से मिलना भी बात भी करना.
तुम भी कोशिश ये जरा सी करना.

वो ना दर से ही लौट जाये कहीं,
घर के कमरों में रौशनी करना.

कैसे कह दूँ वो याद आता नहीं,
मुझसे बातें ना क़ुफ्र की करना.

कुछ तो जादू है उसके खंज़र में,
दिल ने टाला है ख़ुदकुशी करना.

रात आँखों में चाँद का घुलना,
उफ़...ये यादों से दोस्ती करना.

* राकेश जाज्वल्य. ०७.०८.२०११
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Wednesday, July 27, 2011

सरहद-सरहद अनबन क्यूँ हो...

भीगा-भीगा दामन क्यूँ हो.
रूठा-रूठा सा मन क्यूँ हो.

हों कमरे विस्तारित लेकिन,
कटा-कटा सा आँगन क्यूँ हो.

प्यार की ठंडी छांह मिले तो,
रुखा-रुखा बचपन क्यूँ हो.

मीठी-मीठी हो गर बतियाँ,
खट्टा-खट्टा सा मन क्यूँ हो.

खिली-खिली हर सूरत झलके,
टूटा-फूटा दर्पण क्यूँ हो.

महके सोंधी-सोंधी धरती,
सरहद-सरहद अनबन क्यूँ हो.

साफ़-साफ़ हो दिलों के रिश्ते,
दामन-दामन उलझन क्यूँ हो.

: राकेश जाज्वल्य. ०१.०७.२०११.
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Friday, July 15, 2011

उनकी गलियों से आना-जाना है...

उनकी गलियों से आना-जाना है.
यह भी जीने का इक बहाना है.

जो सदा दिल की अनसुनी लौटे,
उनका आँखों में ही ठिकाना है.


दिल्लगी ही सही, कहता तो है,
जो भी वादा किया निभाना है.


जब भी देखो क़रार आता है,
उनकी आँखें हैं, दवाख़ाना है.


कभी आता था हाथ जोड़े हुए,
अब ख़ुदाओं सा जिसका बाना हैं.


अब किताबों में ख़त मिलें कैसे,
छोटे संदेशों का ज़माना है.


आँखों से बहते ग़ज़ल कहते हैं,
जब  भी रोना है,  गुनगुनाना है.


: राकेश जाज्वल्य. १३.०३.२०११.



Thursday, June 30, 2011

जंग-लगे से दिन लगते हैं...

अक्सर तेरे बिन लगते हैं.
जंग - लगे से दिन लगते हैं.

प्रेम की कुंजी बिन जीवन के,
सरल सवाल कठिन लगते हैं.

 जब से पोंछा है आखों को,
गीले से पल - छिन लगते हैं.

 दिल की बातें कहनी हो तो,
बुद्धू सारे प्रवीण लगते हैं.

दिल के पन्नो पर यादों के,
तीखे - नुकीले पिन लगते हैं.

* राकेश जाज्वल्य. ३०.०६.२०११.
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Saturday, June 18, 2011

तुमने जिनको छू लिया -

यहाँ  मेरी इक ग़ज़ल - तुमने जिनको छू लिया - को स्थान मिला है ..... उम्मीद है यह ग़ज़ल आपको भी पसंद आएगी.

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/05/blog-post_21.html#comments

क्यूँ कर तन्हा रातें करना...

क्यूँ कर तन्हा रातें करना.
खुद से उसकी बातें करना.

सच्चे होकर भी क्यूँ हारें,
सीखें हम भी घातें करना.

अपनों की आँखों में, सुख के
सपनों की सौगातें करना.

जब आँखों में उमड़ें बादल,
गज़लों की बरसातें करना.

प्यार में दोनों तरफ वही है,
क्या शह देना, मातें करना.

क्या दुनिया, क्या दुनियादारी,
खुद से भी मुलाकातें करना.

: राकेश जाज्वल्य. ०६.०६.२०११.
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Tuesday, May 10, 2011

मुहब्बत.....

काँच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.



फिर से सिरहाने लौट कर आई,
रात के आधे ख़्वाब के जैसी.


सूनी आँखों में गुमशुदा चेहरा,
या कि..चटके गुलाब के जैसी.


खुली पलकों की अधखुली बातें,
गीले अधरों के कांप के जैसी.


मन के गुम-सुम, उदास कोने में,
किसी ईश्वर के जाप के जैसी.


कांच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.


: राकेश जाज्वल्य. १०.०५.२०११.
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Friday, April 22, 2011

जलन ...

कह रही थी रात सुबह से जो सुबह-सुबह,
तुम्हारी ही खुश्बुओं की कुछ बात थी शायद.

....पूरा दिन हर-श्रृंगार लाल-पीला होता रहा.


: राकेश.
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Friday, April 8, 2011

ये साली ज़िन्दगी....

जितनी दिखती है,
उतनी खुबसूरत नहीं है.
भावनाओं में बहने की
ज़रूरत नहीं है.

ज़िन्दगी है ही ऐसी.
इसकी ऐसी की तैसी.


दिल की भी कभी सुन ले,
ऐसी सोच नहीं है.
बड़ी कड़क है साली,
ज़रा भी लोच नहीं है.

हरदम रहती ऐठीं,
इसकी ऐसी की तैसी.



बड़ी ही ना-शुक्री है,
पास नहीं आती,
सुविधाओं के कीचड़ में,
पड़ी रहे अलसाती.

मोटी-काली-भैसीं.
इसकी ऐसी की तैसी.


इसकी मीठी, रसभरी,
बातों पर हँसना नहीं.
करना हाथों पर यकीं,
लकीरों में फंसना नहीं.

झूठी प्रेमिका जैसी.
इसकी ऐसी की तैसी.


: राकेश ०९.०४.२०११.
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Monday, April 4, 2011

खूबसूरत चिठिया...

राशि और आशि
दोनों नन्ही परियों के लिए...

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प्यार में लिखी,
खूबसूरत चिठिया है.
आँगन में दौड़ती-खेलती,
नन्ही-सी बिटिया है.


कभी वो मेरी दादी अम्माँ,
कभी वो मेरी नानी है.
उसकी सपनीली आँखों में,
मेरी ही कहानी है.


अक्सर मेरी डांटें
भूल जाती है.
हँस कर बांहों में
झूल जाती है.


स्कुल, घर,
जहाँ की बातें हैं.
उसकी नींदें हैं,
मेरे काँधें हैं.


उसका चेहरा
मेरे हर्ष में.
वो मेरे दिन,
महीने वर्ष में.


इतने निश्छल,
प्यारे प्यार के लिए.
ईश्वर तेरा शुक्रिया,
इस उपहार के लिए.

: राकेश. ०४.०४.२०११.
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Sunday, March 13, 2011

दिल का ये अफ़साना......

दिल का ये अफ़साना जी.
सबको नहीं सुनाना जी.


तन्हाई में गूंजा करता
है, यादों का गाना जी.


कच्चा आँगन, पक्का पीपल,
कहाँ वो दादा-नाना जी.


बचपन में चोटी खिंची थी,
दिल उसका हर्ज़ाना जी.


सुबह-सुबह गर शाम मिले
तो, आशीषें ले जाना जी.


अच्छा है जो अखियाँ भीगीं,
नमी में उगता दाना जी.


आँसू बहते दुःख में, सुख में,
अच्छा ताना- बाना जी.


: राकेश जाज्वल्य. १२.०३.२०११.
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Thursday, March 10, 2011

फूंक.........(त्रिवेणी)

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हौले से नमी वाली इक फूंक मारें.
चाँद की आखों से चलो धूल झारें.

अब चेहरा तुम्हारा कुछ साफ़ नज़र आता है.

: राकेश जाज्वल्य. 10.03.2011
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Friday, February 25, 2011

सफ़र....

 
मैंने माना मेरी जानां, कि चलते रहना है बहुत मुश्किल,
पर जो मंज़िल पर हो तुम, तो कदम सुनते नहीं मेरी.

सात जनमों की ही तो बात है, इक सफ़र मैं भी पूरा कर लूँ.

: राकेश जाज्वल्य
२५.०२.२०११.
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