बात खिंच गई बातों में.
नींद उड़ गई रातों में.
तारे बिखरे आँचल पर,
चाँद रह गया हाथों में.
पथरीली दिल की गलियां,
चुनरी उलझी काँटों में.
रात सुलगती धीमी-धीमी,
धुँआ उठा जज्बातों में.
लापरवाह हवा उकसाती,
क्या रक्खा है वादों में.
इक रात की थी ज़िन्दगी,
काटी आँखों-आँखों में.
इश्क मेरी जाँ खेल नहीं,
ना रहना शह और मातों में.
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: राकेश जाज्वल्य.
यहाँ हैं.. मेरी ग़ज़लें और कवितायेँ...... कितनी भी कोशिश करें, चाहें..पी लें..... सूखती नहीं मगर..खारे पानी की झीलें.
Thursday, August 27, 2009
Tuesday, August 25, 2009
अब भी तेरी याद........
अब भी तेरी याद गर आती हैं तो आया करे.
जान दे दी, और तुम बतलाओ कोई क्या करे.
तेरी ऊँगली के कलम से पीठ पर लिखी ग़ज़ल,
लाख कोशिश मै करूँ पर आइना ही पढ़ा करे.
कल जो कुछ बारिश की बूंदें साथ ले आई थीं तुम,
दिल मेरा अब भी उन्हीं बूंदों में ही भीगा करे.
हमसफ़र फिर हमकदम अब हम बने हमदम सनम,
उसका है अहले करम जो हमको हमसाया करे.
इन हवाओं में तेरी आँखों की मीठी ओस है,
जब भी टहलूं ये मेरी पलकों को कुछ गीला करे.
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राकेश जाज्वल्य.
जान दे दी, और तुम बतलाओ कोई क्या करे.
तेरी ऊँगली के कलम से पीठ पर लिखी ग़ज़ल,
लाख कोशिश मै करूँ पर आइना ही पढ़ा करे.
कल जो कुछ बारिश की बूंदें साथ ले आई थीं तुम,
दिल मेरा अब भी उन्हीं बूंदों में ही भीगा करे.
हमसफ़र फिर हमकदम अब हम बने हमदम सनम,
उसका है अहले करम जो हमको हमसाया करे.
इन हवाओं में तेरी आँखों की मीठी ओस है,
जब भी टहलूं ये मेरी पलकों को कुछ गीला करे.
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राकेश जाज्वल्य.
Sunday, August 23, 2009
याद आते हैं जो दुश्मन...
याद आते हैं जो दुश्मन..
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याद आते हैं जो दुश्मन,हबीब होते हैं,
दिलों के फैसले अक्सर अजीब होते हैं.
ना-खुदा से ना खुदा से कोई शिकवा करना,
अपनी मर्जी से सब अपना सलीब ढ़ोते हैं.
उनकी चाहत मुझे बाँहों में ही दफ़न कर दें,
यारों की शक्ल में मासूम रकीब होते हैं.
जमीं बंजर तो क्या, हौसलों की खादों से,
हम अपने खेतों में अपना नसीब बोतें हैं.
कड़ी मेहनत से मिलते हैं नींदों-चैन सनम,
इसी के दम पर सुकून से गरीब सोते हैं.
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: राकेश जाज्वल्य
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याद आते हैं जो दुश्मन,हबीब होते हैं,
दिलों के फैसले अक्सर अजीब होते हैं.
ना-खुदा से ना खुदा से कोई शिकवा करना,
अपनी मर्जी से सब अपना सलीब ढ़ोते हैं.
उनकी चाहत मुझे बाँहों में ही दफ़न कर दें,
यारों की शक्ल में मासूम रकीब होते हैं.
जमीं बंजर तो क्या, हौसलों की खादों से,
हम अपने खेतों में अपना नसीब बोतें हैं.
कड़ी मेहनत से मिलते हैं नींदों-चैन सनम,
इसी के दम पर सुकून से गरीब सोते हैं.
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: राकेश जाज्वल्य
Saturday, August 8, 2009
रात की छत है खाली
रात की छत है खाली
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रात की छत है खाली, मुझे जगाओ ना,
ख्वाबों! अब तकिये से बाहर आओ ना.
घनघोर घटायें छाईं हैं दिल आँगन में,
तुम मुझ पर छतरी जैसे छा जाओ ना.
चाँद का किसने चेहरा ढांपा चुनरी से,
अब सोने के कंगन भी पहनाओ ना.
बारिश की रातें है कैसी उमस भरी,
बैठो, दिन की कुछ बातें बतलाओ ना.
हँसी से खिलता चेहरा प्यारा लगता हैं,
दुनिया के चेहरे पर हँसी खिलाओ ना.
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: rakesh jajvalya.
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रात की छत है खाली, मुझे जगाओ ना,
ख्वाबों! अब तकिये से बाहर आओ ना.
घनघोर घटायें छाईं हैं दिल आँगन में,
तुम मुझ पर छतरी जैसे छा जाओ ना.
चाँद का किसने चेहरा ढांपा चुनरी से,
अब सोने के कंगन भी पहनाओ ना.
बारिश की रातें है कैसी उमस भरी,
बैठो, दिन की कुछ बातें बतलाओ ना.
हँसी से खिलता चेहरा प्यारा लगता हैं,
दुनिया के चेहरे पर हँसी खिलाओ ना.
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: rakesh jajvalya.
Friday, August 7, 2009
मेरी पहली कविता
राशि -मेरी प्यारी बिटिया जो पांच वर्ष की हैं- कुछ दिनों से कविता-नुमा कुछ पंक्तियाँ गुनगुना रही थी (जो इस कविता की प्रथम तीन पंक्तियाँ हैं) मैंने सोचा की उसे प्रोत्साहित कर उससे इक कविता लिखवाई जा सकती हैं, यह कविता ९९ % वैसी ही है , जैसा वह मुझसे कहती गई. मैंने राशि से वादा किया है कि अपनी कविताओं की तरह मै उसकी कविता भी नेट पर पोस्ट करूँगा। मै अपना वादा निभा रहा हूँ।
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मेरी पहली कविता
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ये खुश्बू आ रही है,
हमको ले जा रही है
अपने ही रास्ते।
और हमसे कह रही है
मेरे घर चलो
मेरे साथ बैठो
कुछ मीठी मीठी बातें करो।
तितलियों के पंखो पर
बहुत सारे
अच्छे अच्छे रंग डाल दो।
तितलियाँ कितनी सुंदर लगेगीं
सुंदर सुंदर पंखों में।
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: निर्झरा राशि।
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मेरी पहली कविता
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ये खुश्बू आ रही है,
हमको ले जा रही है
अपने ही रास्ते।
और हमसे कह रही है
मेरे घर चलो
मेरे साथ बैठो
कुछ मीठी मीठी बातें करो।
तितलियों के पंखो पर
बहुत सारे
अच्छे अच्छे रंग डाल दो।
तितलियाँ कितनी सुंदर लगेगीं
सुंदर सुंदर पंखों में।
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: निर्झरा राशि।
दिल के भूरे जज्बातों पर
दिल के भूरे ज़ज्बातों पर,
चाँद का पहरा है रातों पर.
लो, आँगन में झरे सितारे,
हंसी तेरी गूंजी कानों पर.
तेरा रूप दमकता सोना,
कैसे काबू हो साँसों पर.
खिड़की खोली, परदे खोले,
यकीं नहीं खुद के वादों पर.
नग् चमके तेरी बाली के,
और जुगनू मेरी आँखों पर.
दो तारे चंदा पे सिमटे,
दो बाहें मेरी बाँहों पर.
रात यूँ बीती मीठी-मीठी,
शहद जमी सुबह पत्तों पर.
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: rakesh jajvalya.
चाँद का पहरा है रातों पर.
लो, आँगन में झरे सितारे,
हंसी तेरी गूंजी कानों पर.
तेरा रूप दमकता सोना,
कैसे काबू हो साँसों पर.
खिड़की खोली, परदे खोले,
यकीं नहीं खुद के वादों पर.
नग् चमके तेरी बाली के,
और जुगनू मेरी आँखों पर.
दो तारे चंदा पे सिमटे,
दो बाहें मेरी बाँहों पर.
रात यूँ बीती मीठी-मीठी,
शहद जमी सुबह पत्तों पर.
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: rakesh jajvalya.
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