तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े..
तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े..
साँझ-सवेरे मुझको ताकें,
उड़े फुर्र फैलाएं पाँखें.
मेरी उनीदी अंखियों से,
चाँद ढले तक करके बातें,
मुझे लेने न दें साँस......तेरे नैन बड़े...[1]
नैनों में इक कश्ती कोई,
सपनों के तूफां में खोई.
मैंने जब जब कि कोशिशें,
लहरों में पतवारें बोई,
डूबे टखनों तक बांस.......तेरे नैन बड़े...[2]
कभी फ़लक पर इनके डेरे,
बन के बादल पर्वत घेरे.
कागज़-कागज़, धरती-धरती,
ओस गिराए लफ्ज़ बिखेरे.
बनें नर्म मुलायम घांस....तेरे नैन बड़े...[3]
तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े...
तेरे नैन बड़े बदमाश.......तेरे नैन बड़े...
: राकेश जाज्वल्य. 29.09.10.
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यहाँ हैं.. मेरी ग़ज़लें और कवितायेँ...... कितनी भी कोशिश करें, चाहें..पी लें..... सूखती नहीं मगर..खारे पानी की झीलें.
Tuesday, September 28, 2010
Saturday, September 25, 2010
..आज उसके घर की भी लेकिन बनावट देखिये.
अपने दरवाजे किसी क़दमों की आहट देखिये।
ज़िन्दगी में धूप की फिर गुनगुनाहट देखिये।
गलियाँ यूँ फैलीं शहर में, जैसे की दिल में नसें,
इन में बसकर आप दुनिया की बसाहट देखिये।
आपने तो यूँ हमेशा रूह के सज़दे किये,
आज उसके घर की भी लेकिन बनावट देखिये।
आग के दरिया में है ग़र डूबने की ख़्वाहिशें,
पहले अपने तिश्नगी की छटपटाहट देखिये।
उसकी आँखों से बिखरती काजलों की आड़ में,
मिट रही है उसके ख्वाबों की लिखावट, देखिये।
ऐसे कब वो मानते हैं, हाँ!... हूँ मैं भी इश्क में,
जिक्र पर जब हो तेरा तब मुस्कराहट देखिये।
फिर सुखन की चांदनी सी खिल उठी चारों तरफ,
फिर हुई ..... राकेश के आने की आ हट देखिये।
( yah panktiyan -makta- Vinit ji ne likhin hain. unka dil se shukriya.)
ऐसे कब वो मानते हैं कि उन्हें भी इश्क है,
ज़िक्र पर जब हो मेरा तब मुस्कराहट देखिये!
( यह शेर श्री मिसिर साहब द्वारा भाव रूपांतरित करते हुए पुनःप्रस्तुत । )
: राकेश जाज्वल्य २५.०९.१०
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ज़िन्दगी में धूप की फिर गुनगुनाहट देखिये।
गलियाँ यूँ फैलीं शहर में, जैसे की दिल में नसें,
इन में बसकर आप दुनिया की बसाहट देखिये।
आपने तो यूँ हमेशा रूह के सज़दे किये,
आज उसके घर की भी लेकिन बनावट देखिये।
आग के दरिया में है ग़र डूबने की ख़्वाहिशें,
पहले अपने तिश्नगी की छटपटाहट देखिये।
उसकी आँखों से बिखरती काजलों की आड़ में,
मिट रही है उसके ख्वाबों की लिखावट, देखिये।
ऐसे कब वो मानते हैं, हाँ!... हूँ मैं भी इश्क में,
जिक्र पर जब हो तेरा तब मुस्कराहट देखिये।
फिर सुखन की चांदनी सी खिल उठी चारों तरफ,
फिर हुई ..... राकेश के आने की आ हट देखिये।
( yah panktiyan -makta- Vinit ji ne likhin hain. unka dil se shukriya.)
ऐसे कब वो मानते हैं कि उन्हें भी इश्क है,
ज़िक्र पर जब हो मेरा तब मुस्कराहट देखिये!
( यह शेर श्री मिसिर साहब द्वारा भाव रूपांतरित करते हुए पुनःप्रस्तुत । )
: राकेश जाज्वल्य २५.०९.१०
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Thursday, September 23, 2010
आँखों में सबकी चाँद का दरिया....
मैं किसी ना किसी बहाने से,
जीत कर आऊंगा ज़माने से।
ज़िन्दगी से तेरी ग़ज़ल बेहतर,
सुर लगते तो हैं लगाने से।
अब दवा लेना मैंने छोड़ दिया,
दर्द घटने लगा है गाने से।
तेरे आने से कुछ निखरता हूँ,
कुछ बिखरता हूँ तेरे जाने से।
आँखों में सबकी चाँद का दरिया,
तारे बहते हैं दिल दुखाने से।
सर्द रातों में आग के जैसी,
प्यास भड़की है लब मिलाने से।
मुस्कुराने से बात बनती है,
बात बढ़ती है खिलखिलाने से।
इश्क़ तेरा ना ग़लतफ़हमी हो,
बच के रहना तू आज़माने से।
: राकेश जाज्वल्य २३.०९.१०
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जीत कर आऊंगा ज़माने से।
ज़िन्दगी से तेरी ग़ज़ल बेहतर,
सुर लगते तो हैं लगाने से।
अब दवा लेना मैंने छोड़ दिया,
दर्द घटने लगा है गाने से।
तेरे आने से कुछ निखरता हूँ,
कुछ बिखरता हूँ तेरे जाने से।
आँखों में सबकी चाँद का दरिया,
तारे बहते हैं दिल दुखाने से।
सर्द रातों में आग के जैसी,
प्यास भड़की है लब मिलाने से।
मुस्कुराने से बात बनती है,
बात बढ़ती है खिलखिलाने से।
इश्क़ तेरा ना ग़लतफ़हमी हो,
बच के रहना तू आज़माने से।
: राकेश जाज्वल्य २३.०९.१०
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Wednesday, September 22, 2010
..घर से निकलते देर हुई.
जिस दिन बातों में बेर हुई।
घर से निकलते देर हुई।
मेरी ग़ज़लें महज़ शब्द थे,
हँसी तुम्हारी शेर हुई।
कहना-सुनना भर-भर आँखें,
फिर ना कहना देर हुई।
यूँ तेजी से बदला मौसम,
कच्ची अमियाँ चेर हुई।
गिन-गिन उँगली उमर बिताई,
यूँ ही देर सबेर हुई।
थी छटांक सी दिल में मुहब्बत,
तुमसे मिल कर सेर हुई।
* राकेश जाज्वल्य २१।०९।१०।
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बेर = समय।
चेर= वक्त से पहले आम के छोटे फलों का कड़ा हो जाना।
छटांक/ सेर= पुराने दौर के माप/ वज़न।
घर से निकलते देर हुई।
मेरी ग़ज़लें महज़ शब्द थे,
हँसी तुम्हारी शेर हुई।
कहना-सुनना भर-भर आँखें,
फिर ना कहना देर हुई।
यूँ तेजी से बदला मौसम,
कच्ची अमियाँ चेर हुई।
गिन-गिन उँगली उमर बिताई,
यूँ ही देर सबेर हुई।
थी छटांक सी दिल में मुहब्बत,
तुमसे मिल कर सेर हुई।
* राकेश जाज्वल्य २१।०९।१०।
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बेर = समय।
चेर= वक्त से पहले आम के छोटे फलों का कड़ा हो जाना।
छटांक/ सेर= पुराने दौर के माप/ वज़न।
Monday, September 20, 2010
बदतमीज़ रात!....
कल की रात ! ...
बड़ी बदतमीज़ .
रात भर
साथ रही ही रही,
पूरा दिन भी
जगाती ही रही.
तुम्हारे जाने के बाद,
याद तुम्हारी....
जाती भी रही....
..आती भी रही.
: राकेश जाज्वल्य. २०.०९.१०
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बड़ी बदतमीज़ .
रात भर
साथ रही ही रही,
पूरा दिन भी
जगाती ही रही.
तुम्हारे जाने के बाद,
याद तुम्हारी....
जाती भी रही....
..आती भी रही.
: राकेश जाज्वल्य. २०.०९.१०
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Tuesday, September 7, 2010
री..माई...कासे कहूँ मन-बतियाँ....(गीत)- 1
री ..माई....
कासे कहूँ मन-बतियाँ.
लिख-लिख राखी पतियाँ....री माई.. कासे कहूँ..
१.
खेल - खिलौने मुझसे रूठे,
वो बचपन के दिन भी छूटे,
ये कैसे दिन मुझ पर आये,
काहे अकेलापन मुझे भाये,
काहे ना भाये सखियाँ....री माई...कासे कहूँ..
२.
सूरज छेड़े आँगन- आँगन,
चमकाए मोरे अँखियाँ दरपन,
अब मोहे चंदा ना सुहाए,
छिप कर देखे, क्यों मुस्काए,
नींद ना आये रतियाँ....री...माई... कासे कहूँ..
३.
माई तू मेरी सखी- सहेली,
पर कैसी यह अबूझ पहेली,
यह कैसा आकाश है भीतर,
उड़ना चाहूँ ले अपने पर।
सपन उगायें अँखियाँ....री..माई...कासे कहूँ..: राकेश जाज्वल्य ०७।०९।१०।
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कासे कहूँ मन-बतियाँ.
लिख-लिख राखी पतियाँ....री माई.. कासे कहूँ..
१.
खेल - खिलौने मुझसे रूठे,
वो बचपन के दिन भी छूटे,
ये कैसे दिन मुझ पर आये,
काहे अकेलापन मुझे भाये,
काहे ना भाये सखियाँ....री माई...कासे कहूँ..
२.
सूरज छेड़े आँगन- आँगन,
चमकाए मोरे अँखियाँ दरपन,
अब मोहे चंदा ना सुहाए,
छिप कर देखे, क्यों मुस्काए,
नींद ना आये रतियाँ....री...माई... कासे कहूँ..
३.
माई तू मेरी सखी- सहेली,
पर कैसी यह अबूझ पहेली,
यह कैसा आकाश है भीतर,
उड़ना चाहूँ ले अपने पर।
सपन उगायें अँखियाँ....री..माई...कासे कहूँ..: राकेश जाज्वल्य ०७।०९।१०।
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Saturday, September 4, 2010
वो जब कभी भी याद आएगा......
वो जब भी याद आएगा।
है यकीन मुझको, रुलाएगा।
फिर निगाहों की नम ज़मीनों पर,
फूल नमकीन वो उगाएगा।
उसके आँगन में बरस कर बादल,
मेरे गालों पे लुढ़क जाएगा।
किसके चेहरे में कितने चेहरें हैं,
वक्त आने पे नज़र आएगा।
इश्क़ हर ज़ख्म कुछ हसीं होकर,
फिर दुआओं में बदल जायेगा।
वो बिछड़ कर भी मुस्कुराता है,
यूँ उमर भर मुझे सताएगा।
उसका आना तो याद आता था,
अब ये जाना भी याद आएगा।
सोने-सोने सा हर सपना उसका,
चाँदी- चाँदी मुझे जगायेगा।
आज थोड़ी सी ज़िन्दगी बेची,
कल का कुछ और देखा जायेगा।
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: राकेश जाज्वल्य ०५।०९।१०।
है यकीन मुझको, रुलाएगा।
फिर निगाहों की नम ज़मीनों पर,
फूल नमकीन वो उगाएगा।
उसके आँगन में बरस कर बादल,
मेरे गालों पे लुढ़क जाएगा।
किसके चेहरे में कितने चेहरें हैं,
वक्त आने पे नज़र आएगा।
इश्क़ हर ज़ख्म कुछ हसीं होकर,
फिर दुआओं में बदल जायेगा।
वो बिछड़ कर भी मुस्कुराता है,
यूँ उमर भर मुझे सताएगा।
उसका आना तो याद आता था,
अब ये जाना भी याद आएगा।
सोने-सोने सा हर सपना उसका,
चाँदी- चाँदी मुझे जगायेगा।
आज थोड़ी सी ज़िन्दगी बेची,
कल का कुछ और देखा जायेगा।
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: राकेश जाज्वल्य ०५।०९।१०।
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