Thursday, December 24, 2009

यूँ तो हर रात मुँह-जुबानी है.......


यूँ तो हर रात मुँह-जुबानी है।
देह से भी परे कहानी है।

रूह जलती है सर्द बाँहों में,
कीमतें प्यार की चुकानी है।

उदास धूप और जमाने में,
दर्द की चादरें सुखानी है।

आईना बोलता है यूँ मुझको,
तेरी मेरी-सी जिन्दगानी है।

ये जो तकिये पे गीली रेतें है,
इक समंदर की ये निशानी है।

रिश्ते टूटे तो जाँ निकलती है,
बाकि साँसे तो आनी-जानी है।
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: राकेश जाज्वल्य


Tuesday, December 22, 2009

* नज़रें / nazre.n *

जब भी मिलें उनसे, बचने की सोंचें.
निगाहों के नाख़ून, दिल की खरोचें.
***
Jab bhi mile.n unse, bachne ki soche.n,
nigaho.n ke nakhun, dil ki kharoche.n.
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: Rakesh Jajvalya.

Monday, December 21, 2009

आओ ग़म पकाएँ मियाँ....

आओ ग़म पकाएँ मियाँ.
बड़े मजे से खाएँ मियाँ.

दुनिया भी दुनियादारी भी,
हंसकर काम चलायें मियाँ.

झूठी आस पे जिन्दा रहती,
सच की अभिलाषाएँ मियाँ.

मुफ़लिसी के जो शहजादे,
उनकी कहाँ अदायें मियाँ.

नए दौर में सच्ची मुहब्बत?
यूँ ना हमें हंसायें मियाँ.

इक दूजे के दिल से खेलें,
अपना दिल बहलायें मियाँ.

रात भी तेरी, चाँद भी तेरा,
अपनी सारी बलाएँ मियाँ.

आँखें- वांखें, हँसी- वंसी,
प्रेम की सब भाषाएँ मियाँ.
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: rakesh jajvalya.

Wednesday, December 16, 2009

कुछ दिनों पहले मेरी इक बड़ी पुरानी रचना हाथ लगी, शुरूआती दौर की रचना है, स्कुल के टाइम की, यह सोचते हुए पोस्ट कर रहा हूँ कि स्कुल के बाद कालेज के दिनों में भी लिखते रहना चाहिए था :D .

ज़िन्दगी.....
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टुकड़ों-टुकड़ों से मैंने सजा ली है ज़िन्दगी.
कितने जतन से मैंने संभाली है ज़िन्दगी.

छूटा, गिरा और टूट कर बिखर गया,
कांच की ईक नाज़ुक प्याली है ज़िन्दगी.

मौत ने तो कोशिश कम न की मगर,
बेवफा होने से मैंने बचा ली है ज़िन्दगी.

रोते रहिये अपनी ज़िन्दगी को आप,
मैंने आँसुओं में ही पा ली है ज़िन्दगी.

होंगे ग़म लाख मगर, कम नहीं खुशियाँ,
किसी के हँसते गालों की लाली है ज़िन्दगी.

सजाये है मेरी आँखों में ये सितारे किसने,
कि अब तो हर ईक रात दिवाली है ज़िन्दगी.
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: राकेश जाज्वल्य.

Tuesday, December 1, 2009

वो लड़की.... / vo ladki...

जब भी मुस्कुराए वो.
बातों को महकाए वो.

यादें, घुंघरू पायल के,
आँखों ख्वाब बजाये वो.

आँगन चंपा की बेलें,
चंदा माथ सजाये वो.

गुल्लक, मेरे गम का,
जाने कहाँ छिपाए वो.

नमक-डली सा अपना दिल,
रातों को पिघलाए वो.
==========
jab bhi muskuraye vo.
bato.n ko mahkaye vo.

yaade.n ghungharu paayal ke,
aankho.n khwab bajaye vo.

aangan champa ki bele.n,
chanda maath sajaye vo.

gullak, mere gam ka,
jaane kaha.n chhipaye vo.

namak-dali sa apna dil,
raato.n ko pighlaye vo.
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: राकेश जाज्वल्य.

Monday, November 30, 2009

आतंक

आतंक
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वे हँसते रहे,
लोग मरते रहे,
लहू बहता रहा.

गिद्ध से पैने नाखूनों से,
शरीर पर लकीरें,
बहता हुआ लहू..
क्या भाई का है..?
या भाईजान का..?
सब सोचते रहे,
वे हँसते रहे।

कोई चीखा है,
मैंने सुना,
आपने सुना,
सब सुनते रहे,
वे हँसते रहे।

मरते रहेंगे लोग,
सड़ती रहेंगी लाशें,
वे अगर चुप न हुए..
तो मौत के इंतज़ार में,
हम सब भी हँसने लगेंगे.
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: राकेश जाज्वल्य.

Friday, November 27, 2009

अगर किसी दिन........राशि की नई रचना.

राशि की नई कविता प्रस्तुत है, दिन भर की उसकी चह-चहाहटों और उछल-कूद के बीच उसकी कवितायेँ घर भर में धूप की तरह बिखरती रहती हैं. उसकी कल्पनाओं के संसार में आपका भी स्वागत है......


अगर किसी दिन….
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अगर किसी दिन.........
मेरे घर के आँगन में बर्फ गिरेगी,
आँगन के फूलों को
बहुत ठण्ड लगेगी.
फूल आयेंगे घर के अंदर,
और बाहर जायेंगे,
अपने अपने छत लेकर.
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: निर्झरा राशि
२३ नवम्बर २००९.

ग़ज़ल लिखेंगे, गीत लिखेंगे......

ग़ज़ल लिखेंगे, गीत लिखेंगे.
तुझको ही मनमीत लिखेंगे.

मुह्हबत का है खेल अनोखा,
दिल हारेंगें, जीत लिखेंगे.

जिसे जमाना दुहरायेगा,
प्रीत की ऐसी रीत लिखेंगे.

सर्द हवाओं में उंगली से,
गयी जो बातें बीत, लिखेंगे.

चेहरा तेरा गुलाब हुआ, अब
हम मौसम में शीत लिखेंगे.
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: राकेश जाज्वल्य.

खुद से बदला, अब इस कदर भी......

खुद से बदला,अब इस कदर भी लिया जायेगा.
बिना तेरे भी कई रात जिया जायेगा.

कल जो देखा था मैंने,चाँद कुछ अधुरा था.
तेरी बिंदिया मिला के चाँद सिया जायेगा.

कहने-सुनने की जो बातें है,सब कहें मुझसे,
तुझ पे हर तंज,यहाँ दिल पे लिया जायेगा.

दें कसमें मुझे,समझाएं भी, तो क्या हासिल,
दिल जो मैं दे चूका,वापस ना लिया जायेगा.

कहीं ये हो ना हो, पर प्यार में जरुरी है,
जो भी रूठे, उसे बाँहों में लिया जायेगा.
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: राकेश जाज्वल्य.

Wednesday, November 25, 2009

बस्ती का अगर एक भी शख्स ......

बस्ती का अगर एक भी शख्स परेशान है.
तो हो ख़बर, आफ़त में अब हाकिम की जान है.

बस पुतलियाँ हिलती हैं बेज़ुबान ज़िस्म में,
बिस्तर पर आज कल मेरा हिन्दुस्तान है.

यह भी नहीं पता के कहाँ कौन रह रहा,
किस बात का फिर तू भला, मालिक-मकान है.

मर्जी तुम्हारी, रोओ या चिल्लाओ जोर से,
इन मुर्तिओं के पास कहाँ आँख- कान है.

पैनी करो कलम मगर तलवार भी रखो,
है चक्र भी, ग़र अनसुनी बंशी की तान है.

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: राकेश जाज्वल्य.

Thursday, November 12, 2009

आज-कल की चीजें....

आज-कल की चीजों का
कोई भरोसा नहीं.

शर्ट की जेब पर फैला
यह लाल रंग देखकर,
बस यही ख्याल आता है.

शर्ट की जेब में
एक छोटी डायरी,
कुछ रसीदें,
थोडा सा चिल्हर,
लाल-नीली दो पेनें
और हाँ,
तुम्हारा
एक पुराना ख़त भी
रख लिया था मैंने,
घर से निकलते-निकलते.

जरा देखूं तो सहीं...

यह मेरा पेन...तो..
बिलकुल ठीक है,
तो फिर..........
कमबख्त,
यह दिल ही रिसा होगा.

सच ही है !
अब कोई भरोसा नहीं रहा,
आज- कल की चीजों का.
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: राकेश जाज्वल्य.

Tuesday, November 10, 2009

हसरत..../ हसरत....

हसरत...
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कातिलों !
मेरे सोने का
इन्तेज़ार किया होता,
जान भले ही जाती,
ख्वाब तो रह जाते.
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hasrat..
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katilo.n!
mere sone ka
intezaar kiya hota,
jaan bhale hi jaati,
khwab to rah jaate.
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: राकेश.

शिकायत........

मेरे दोस्त, मेरा ज़ख्म खुला छोड़ने से पहले,
मेरे होंठ सी गए थे, साथ छोड़ने से पहले.

है ज़िन्दगी से मुझको बस इतनी शिकायत,
क्यूँ तोड़ दीं उम्मीदें, दम तोड़ने से पहले.

थी बात महज़ वक्त की, जिंदा था शहर में,
मिल तो सभी से आया, घर छोड़ने से पहले.

नए हुजुर कुछ अलग इन्साफ तलब थे,
खिंच लेते थे जुबाँ, कुछ बोलने से पहले.

जंगल में गूँजी चीख़ महज़ चीख़ नहीं थी,
लगाकर गयी थी आग, जहाँ छोड़ने से पहले.
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: राकेश जाज्वल्य.

Thursday, November 5, 2009

तुम भी ना.......!

आसमान,
सुबह तलक था जो
कोरे कागज के जैसा,
शाम होते ही ,
कहीं से नीला और
कहीं- कहीं से गुलाबी
नज़र आता है,
तुमने जरुर
आज फिर,
नेलपालिश लगी
उँगलियों से,
आसमान में,
मेरे ख़त के पुर्जे
उड़ाए है.
---------
:राकेश जाज्वल्य.

Wednesday, November 4, 2009

सड़क के इस छोर पर......

घर के सामने से जाती हुई
सीधी सड़क पर
दूर तक जाती हैं नज़रें,
जब तलक के
जाने पहचाने चेहरे
बदल नहीं जाते.
धुंधली आकृतियों में.

स्वप्न आँखों में
और होठों पर
ढेर सारे वादे धरे
इक चेहरा
निहारती रही हूँ मैं.

कई बरसों से,
इस सड़क के किनारे के,
इस घर के दरवाजे पर
लौटते कदमों की
कोई आहट नहीं सुनी मैंने.
और अब
बीते बरस तुम.

फिर वही स्वप्न
और फिर वैसे ही वादे लिए.

लौट आओ बेटा!
इस सड़क का
कोई दूसरा छोर नहीं है.
यह सड़क
लौटती नहीं कभी.

इस सड़क पर,
दूर की कोई धुंधली आकृति
पास आकर बदलती नहीं
जाने-पहचाने चेहरे में.

लौट आओ,
के समय रहते
पहचान सकूँ तुम्हें,
लौट आओ,
इससे पहले के
सड़क का धुंधलापन
मेरी निगाहों में उतर आये.
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: राकेश जाज्वल्य.

Tuesday, November 3, 2009

मेरे करीब तुम आये हो..

मेरे करीब तुम आये हो..
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मेरे करीब तुम आये हो, अब के बरसों में.
के जैसे ख्वाब सा महका हो, पीली सरसों में.

मेरी मुंडेर पे कागा कई बरसों बोला,
झूठा वादा था की मिलते हैं कल या परसों में.

वो तुम ही थे जिसे ढूंढा था लकीरों में कभी,
वो तुम ही हो की अब मिलते हो गीली पलकों में.

था इक निगाह का मसला, जो कभी हल ना हुआ,
दबी है गहरी उदासी इक, मन की परतों में.

वो आग थी के धुँए का हुआ भरम मुझको,
गीली-गीली सी मुहब्बत थी चुप के परदों में.
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: rakesh jajvalya.

Thursday, August 27, 2009

बात खिंच गई.........

बात खिंच गई बातों में.
नींद उड़ गई रातों में.

तारे बिखरे आँचल पर,
चाँद रह गया हाथों में.

पथरीली दिल की गलियां,
चुनरी उलझी काँटों में.

रात सुलगती धीमी-धीमी,
धुँआ उठा जज्बातों में.

लापरवाह हवा उकसाती,
क्या रक्खा है वादों में.

इक रात की थी ज़िन्दगी,
काटी आँखों-आँखों में.

इश्क मेरी जाँ खेल नहीं,
ना रहना शह और मातों में.
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: राकेश जाज्वल्य.

Tuesday, August 25, 2009

अब भी तेरी याद........

अब भी तेरी याद गर आती हैं तो आया करे.
जान दे दी, और तुम बतलाओ कोई क्या करे.

तेरी ऊँगली के कलम से पीठ पर लिखी ग़ज़ल,
लाख कोशिश मै करूँ पर आइना ही पढ़ा करे.

कल जो कुछ बारिश की बूंदें साथ ले आई थीं तुम,
दिल मेरा अब भी उन्हीं बूंदों में ही भीगा करे.

हमसफ़र फिर हमकदम अब हम बने हमदम सनम,
उसका है अहले करम जो हमको हमसाया करे.

इन हवाओं में तेरी आँखों की मीठी ओस है,
जब भी टहलूं ये मेरी पलकों को कुछ गीला करे.
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राकेश जाज्वल्य.

Sunday, August 23, 2009

याद आते हैं जो दुश्मन...

याद आते हैं जो दुश्मन..
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याद आते हैं जो दुश्मन,हबीब होते हैं,
दिलों के फैसले अक्सर अजीब होते हैं.

ना-खुदा से ना खुदा से कोई शिकवा करना,
अपनी मर्जी से सब अपना सलीब ढ़ोते हैं.

उनकी चाहत मुझे बाँहों में ही दफ़न कर दें,
यारों की शक्ल में मासूम रकीब होते हैं.

जमीं बंजर तो क्या, हौसलों की खादों से,
हम अपने खेतों में अपना नसीब बोतें हैं.

कड़ी मेहनत से मिलते हैं नींदों-चैन सनम,
इसी के दम पर सुकून से गरीब सोते हैं.
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: राकेश जाज्वल्य

Saturday, August 8, 2009

रात की छत है खाली

रात की छत है खाली
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रात की छत है खाली, मुझे जगाओ ना,
ख्वाबों! अब तकिये से बाहर आओ ना.

घनघोर घटायें छाईं हैं दिल आँगन में,
तुम मुझ पर छतरी जैसे छा जाओ ना.

चाँद का किसने चेहरा ढांपा चुनरी से,
अब सोने के कंगन भी पहनाओ ना.

बारिश की रातें है कैसी उमस भरी,
बैठो, दिन की कुछ बातें बतलाओ ना.

हँसी से खिलता चेहरा प्यारा लगता हैं,
दुनिया के चेहरे पर हँसी खिलाओ ना.
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: rakesh jajvalya.

Friday, August 7, 2009

मेरी पहली कविता

राशि -मेरी प्यारी बिटिया जो पांच वर्ष की हैं- कुछ दिनों से कविता-नुमा कुछ पंक्तियाँ गुनगुना रही थी (जो इस कविता की प्रथम तीन पंक्तियाँ हैं) मैंने सोचा की उसे प्रोत्साहित कर उससे इक कविता लिखवाई जा सकती हैं, यह कविता ९९ % वैसी ही है , जैसा वह मुझसे कहती गई. मैंने राशि से वादा किया है कि अपनी कविताओं की तरह मै उसकी कविता भी नेट पर पोस्ट करूँगा। मै अपना वादा निभा रहा हूँ।
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मेरी पहली कविता
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ये खुश्बू आ रही है,
हमको ले जा रही है
अपने ही रास्ते।
और हमसे कह रही है
मेरे घर चलो
मेरे साथ बैठो
कुछ मीठी मीठी बातें करो।
तितलियों के पंखो पर
बहुत सारे
अच्छे अच्छे रंग डाल दो।
तितलियाँ कितनी सुंदर लगेगीं
सुंदर सुंदर पंखों में।
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: निर्झरा राशि।

दिल के भूरे जज्बातों पर

दिल के भूरे ज़ज्बातों पर,
चाँद का पहरा है रातों पर.

लो, आँगन में झरे सितारे,
हंसी तेरी गूंजी कानों पर.

तेरा रूप दमकता सोना,
कैसे काबू हो साँसों पर.

खिड़की खोली, परदे खोले,
यकीं नहीं खुद के वादों पर.

नग् चमके तेरी बाली के,
और जुगनू मेरी आँखों पर.

दो तारे चंदा पे सिमटे,
दो बाहें मेरी बाँहों पर.

रात यूँ बीती मीठी-मीठी,
शहद जमी सुबह पत्तों पर.
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: rakesh jajvalya.

Wednesday, July 29, 2009

हँसी, खुशी, सिसकी / hansi, khushi, siski

हँसी, खुशी, सिसकी या वीराने सा कुछ,
है रात के आगोश में अफ़साने सा कुछ.

बे-तकल्लुफी से सबसे मिलता तो है मगर,
आने में उसके होता है ना आने सा कुछ .

पूरा दिन ही मिठास से लबरेज़ हो गया,
उसकी बातों में है शक्कर दाने सा कुछ.

कभी यूँ ही रूठने से भी होता है फायदा,
मिलता है उन लबों से हर्जाने सा कुछ.

तुम गए, खुशियों का बटुआ ही खो गया,
जेब में बचा फ़कत चार आने सा कुछ.
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hansi, khushi, siski ya virane sa kuchh,
hai rat ke aagosh me afsaane sa kuchh.

be-takllufi se sabse milta to hai magar,
aane me uske hota hai na aane sa kuchh .

pura hi din mithas se labrez ho gaya,
uski baton me hai shakkar dane sa kuchh.

Kabhi yun hi ruthne se bhi hota hai fayda,
milta hai un labon se harjane sa kuchh.

Tum gaye, khushiyon ka batua hi kho gaya
Jeb me bacha fakat chaar aane sa kuchh.
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: राकेश जाज्वल्य.

Saturday, July 25, 2009

तेरी याद के दस बहाने

खुश्बू, बादल, सपने, बातें,
धूप, ग़ज़ल, कुछ दर्द पुराने...
तेरी याद के दस बहाने.

ख्वाबों में है अब भी आती,
इक लड़की हंसती और गाती.
बे- मतलब शरमाया करती,
लिख कर नाम मिटाया करती.
गीत कई गूंजें अनजाने .
तेरी याद के दस बहाने.

तब चर्चाएँ आम थी,
सीने में धड़कती शाम थी.
इक चाँद नुमाया होता था,
जब छत पर साया होता था.
जागी रातों के अफसाने.
तेरी याद के दस बहाने.

उस दिन जब हम जुदा हुए थे,
खुदा से भी हम खफा हुए थे.
भले ही ज़िन्दगी सच होती है,
आँख मगर फिर भी रोती है.
किस्मत फिर से आजमाने.
तेरी याद के दस बहाने.
------------------------
: राकेश जाज्वल्य

Thursday, July 23, 2009

फफूँद / Fafoond

जाते जाते जब तुमने
दरवाजे को बंद किया था,
उठकर मैंने उसी वक्त
भीतर से कुण्डी लगा ली थी.

खिड़कियों पर मैंने फ़िर
तेरी ना का पर्दा ताना था,
और कमरे में रोशन बातों की
सारी बाती बुझा दी थी.

तेरे ही ख़त चिपकाये थे
रोशनदानों की कांचों पर,
और चुप का मोटा कम्बल डाला था
दिल की कुछ आवाजों पर.

फैली-बिखरी हर चीजों पर,
मुहब्बत का इक गर्द रहा,
आँखों के रिसते पानी से
घर का हर कोना सर्द रहा.

बे-नींद, बे-ख़्वाब निगाहों पर
अब पलकें दर्द से झुकती है,
और
ज़हन के गीले पैरहन में
तेरी याद फफूँद सी उगती है.
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jate-jate jab tumne
darvaje ko band kiya tha,
uthkar maine usi vakt
bhiter se kundi laga li thi.

kidkiyon par maine fir
teri na ka parda tana tha,
aur kamre me roshan baaton ki
sari bati bujha di thi.

tere hi khat chipkaye the
roshandanon ki kaanchon par,
aur chup ka mota kambal daala tha
dil ki kuchh aavazon par.

faili-bikhri har chizon par
muhbbat ka ik gard raha,
aankhon ke riste pani se
ghar ka har kona sard raha.

be-nind, be-khwab nigahon par
ab palken dard se jhukti hain,
aur
zehan ke gile pairahan me
teri yaad fafund si ugti hai.
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; राकेश जाज्वल्य

Friday, July 17, 2009

गीली धूप के गाँव में / gili dhoop ke gaon me

गीली धूप के गाँव में वह इन्द्रधनुष पर रहती है.
उसकी हंसी से फूल नए रंगों में सजती-संवरती है.

चढ़ती है वह मेरे घर की सीढियाँ भी कुछ इस तरह,
जैसे के आँगन में सवेरे हौले धूप उतरती है.

लहरों से जो खेला करती सूरज संग अटखेलियाँ,
तन्हाई में रातों की वो नदी भी रोया करती है.

उसके होने से जैसे हो जाता हूँ मै शख्स नया,
मेरे होने से कुछ उसकी जुबां भी और निखरती है.

इक हल्की शरारत से उसको जब कोई गीत सुनाता हूँ,
इक हल्की सी मुस्कान नई उसके चेहरे पे बिखरती है.

: rakesh jajvalya

Sunday, July 12, 2009

बैठो जरा / baitho jara

बैठो जरा ठहर कर जाना.
अपना घर है फिर-फिर आना.

इक शहर के हम अजनबी, पर
सोचो तो निकलेगा रिश्ता पुराना.

पलकों पे आँसूं के बादल भी हों तो,
होठों से है सबको हँसना- हँसाना.

जब भी लगे रिश्ते बोनसाई-से,
आँगन में पीपल का पौधा लगाना.

रुमालों पे रातों की लिखी कहानी,
दिन में सभी की नज़र से बचाना.

तेरी ही सोहबत में रक्खा है दिल को,
बिगड़ेगा जब तब-की देखेंगें जानां.
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baitho jara thahar kar jana.
apna ghar hai fir-fir aana.

ik shahar ke hum ajnabi, par
socho to niklega rishta purana.

palkon pe aansu ke badal bhi ho to,
hothon se hai sabko hasna-hasana.

jab bhi lage riste bonsai-se,
aangan me pipal ka paudha lagana.

rumalon pe raton ki likhi kahani,
din me sabhi ki nazar se bachana.

teri hi sohbat me rakkha hai dil ko,
bigdega jab tab-ki dekhenge jana.
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: rakesh jajvalya

Friday, July 10, 2009

बूंद इक बारिश की / Bund ik barish ki

बूंद इक बारिश की उसके जुल्फ पर ठहरी हुई,
खाके बल जैसे के नदिया और भी गहरी हुई.

गालों पर उसके रुकी सी इक अलग मुस्कान है,
चाँद के घर रात जैसे चांदनी ठहरी हुई.

देती है दिल को तसल्ली यूँ तो पूरा दिन मगर,
जाके दरवाजे पे रातों को नजर ठहरी हुई.

तेरी वो चुनरी जो लहराती फिरे थी कल तलक,
आके अब बाँहों में मेरी बे-खबर ठहरी हुई.

है बड़ी मासूम मौसम से तेरी शिकायतें,
आके क्यूँ बरखा मुई मेरी छत पे है ठहरी हुई.
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bund ik barish ki uske julf par thahri hui,
Khake bal jaise ke nadiya aur bhi gahri hui.

galon par uske ruki si ik alag muskan hai,
chand ke ghar rat jaise chandani thahri hui.

Deti hai dil ko tassalli yun to pura din magar,
jake darwaje pe raton ko najar thahri hui.

Teri vo chunri jo lahrati fire thi kal talak,
Aake ab bahon me meri be-khabar thahri hui.

Hai badi masum mausam se teri shikayten,
Aake kyun barkha mui meri chhat pe hai thahri hui.
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:rakesh jajvalya

Saturday, July 4, 2009

कोई अतीत उसका/ koi atit uska

कोई अतीत उसका
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उसकी सूनी निगाहें,
खामोश चेहरा और
बरसो से आले पर टंगी
उसकी संदुकची
उत्सुकता जगाती रही थी,
लगता था की जैसे..
कोई अतीत उसका बरसों से
पलकों में ख्वाब की तरह
दुनिया से, मुझ से और खुद से ही
अपने आप को छुपाये हुए है.
क्या हो सकता है उसमे
मै अक्सर सोचता -
किसी सहेली की याद, भैया की डांट,
माँ की कोई सलाह, पिता की चिंता,
घर-परिवार, कोई ना मिला अधिकार,
या फिर कोई अधुरा प्यार.....शायद.
क्या पता?
फिर इक दिन ..
मैंने वह किया जो मुझे नहीं करना था.
मैंने अकेले में
उसकी वह संदुकची खोली और
खोज निकली उसकी इक डायरी जो थी
बड़ी पुरानी,
धड़कते दिल और कांपती उँगलियों से
मैंने उसके पन्ने पलटे और
खुद भी थोडा सा रोया था
क्योंकि ........
उस खाली डायरी में
सिर्फ इक सुखा गुलाब, इक मोर पंख और
इक पन्ना मुडा हुआ सा था.
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: rakesh jajvalya
05.07.09

Monday, June 29, 2009

उसकी बातों में / uski baaton me

उसकी बातों में कुछ ऐसा कमाल होता है,
रंग मौसम के भी गालों का लाल होता है.

उसकी पलकों पे बदलती है यूँ सदियाँ पल में,
मेरी आँखों में क्यूँ सदियों सा साल होता है,

जब भी देती है ज़वाब हँस के मुझको, ऐसा लगे
जैसे हर बार ग़लत मेरा सवाल होता है.

इक दरिया में जब डूबा करते हैं दोनों,
गहरे पानी में भी अक्सर उछाल होता है.

उसका तमन्नाई है, इस दिल को मै समझाऊं क्या,
जो भी मिलता है बुरा उसका हाल होता है.

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Uski baton se kuchh aisa kamal hota hai,
rang mausam ke bhi gallon ka lal hota hai.

Uski palakon pe badalti hai yun sadiyan pal me,
Meri aankhon me kyun sadiyon sa saal hota hai,

Jab bhi deti hai jawab hans ke mujhko, aisa lage
jaise har bar galat mera sawal hota hai.

Ik dariya me jab duba karte hain dono,
Gahre panni me bhi aksar uchhal hota hai.

Uska tamnnai hai, is dil ko mai samjhaun kya,
Jo bhi milta hai bura uska haal hota hai.

: राकेश जाज्वल्य
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Saturday, June 27, 2009

अलग / Alag - इक नई ग़ज़ल

अलग
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आँखों की तेरी हर बात अलग,
जैसे की सुरमई रात अलग.

है लबों को लब से जुम्बिशें,
कैसे होगा ये साथ अलग.

मुझे मौत गवारा है, लेकिन
देना मुझको आघात् अलग.

मेरी धड़कन पर है नाम तेरा,
तू माने ना, ये बात अलग.

तू ज़हर अगर है हुआ करे,
मै फूल हूँ मेरी काट अलग.
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Alag
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Ankhon ki teri har bat alag,
jaise ki surmai rat alag.

Hai labon ko lab se jumbishen,
kaise hoga ye sath alag.

Mujhe maut gawara hai, lekin
dena mujhko aaghaat alag.

Meri dhadkan par hai nam tera,
tu mane na, ye bat alag.

tu zahar agar hai hua kare,
mai phul hun meri kat alag.
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: राकेश जाज्वल्य

Friday, June 26, 2009

गौरैया- एक छोटी सी रचना अकाल पर

गौरैया- एक छोटी सी रचना अकाल पर
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सूखे सारे ताल- तलैया,
कब से प्यासी है गौरैया.

खेतों में नहीं फसलें, दाने
कहाँ से लाएगी गौरैया.

धरती सुखी, पेड़ भी सूखे,
आँखों से गीली गौरैया.

दूर देश से आते बादल,
दिल को समझाती गौरैया.

खारे जल से मीठा सपना,
सींचा करती है गौरैया.
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Gauraiya- Ek chhoti si rachna akaal par
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sukhe sare taal- talaiya,
kab se hai pyasi gauraiya.

Kheton me nahi Faslen, dane
Kahan se layegi gauraiya.

Dharti sukhi, ped bhi sukhe,
Aankhon se gili gauraiya.

Dur desh se aate badal,
Dil ko samjhati gauraiya.

khare jal se mitha sapna,
sincha karti hai gauraiya.

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: राकेश जाज्वल्य

Thursday, June 25, 2009

अम्मा / Amma

 अम्मा बड़ी कमाल है......
 
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सब की छोटी-छोटी,सारी बातों का ख्याल है,
मुझको जादूगर सी लगती, अम्मा बड़ी कमाल है.

उसकी आँखों का सूरज मुझको गीला सा लगता है,
उसके माथे की चंदा का रंग भी सुर्ख लाल है.

मैंने अक्सर देखा है वो छुप के रोया करती है,
उसका पल्लू जैसे कोई सतरंगी रुमाल है.

चिमटा बेलन लेकर वो हम सब को डांटा करती है,
बच्चे कुछ खाते ही नहीं है, उसको बड़ा मलाल है.
 
रिश्तों के चादर की सारी सलवट वो सुलझाती है,
तनी हुई डोरी पर अम्मां सधी हुई सी चाल है.
 
हँस-हँस कर जो पूरा करती सब की हर फरमाईशें,
उसके भी कुछ सपने होंगे,घर में किसे ख्याल है.
 
: राकेश बनवासी जाज्वल्य
 
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Sab ki chhoti-chhoti sari baton ka khyal hai,
Mujhko jadugar si lagti, amma badi kamal hai




Uski aankho ka suraj mujhko gila sa lagta hai,
Uske mathe ki chanda ka rang bhi surkh lal hai.




Maine aksar dekha hai vo chhup ke roya karti hai,
Uska pallu jaise koi satrangi rumal hai.




Chimta belan lekar vo to sab ko data karti hai,
Bachhhe kuchh khate hi nahi hai usko bada malal hai.




Rishtey ki chadar ki sari salvat vo suljhati hai,
Tani hui dori par amma sadhi hui si chaal hai.
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Hans hans kar jo pura karti sab ki har farmaishen,
Uske bhi kuchh sapne honge ghar me kise khyal hai.


: Rakesh Jajvalya.

Tuesday, June 23, 2009

सिगरेट के कश का आखिरी गुल / Cigarette ka aakhiri gul

Cigarette ke kash ka aakhiri gul hai,
Dubta suraj bhi kya beautiful hai.

Chehre pe shikan hain barso ke,
sadiyon ki pairon me dhul hai.

Mohabbat ke har afsane me,
teri meri vahi bhool hai.

Tu aur tera gam mujhko,
Kubul hai, kubul hai, kubul hai।
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सिगरेट के कश का आखिरी गुल है,
डूबता सूरज भी क्या ब्यूटीफुल है।

चेहरे पे शिकन है बरसों के,
सदियों की पैरों में धूल है।

मोहब्बत के हर अफ़साने में,
तेरी- मेरी वही भूल है।

तू और तेरा ग़म मुझको,
कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है।

: राकेश जाज्वल्य




मौसम हरा भरा

मौसम हरा भरा देखो,
इक हँसता चेहरा देखो।

सूरज भी लगता चंदा सा ,
कोहरा इक सुख का देखो।

उसके कानों की बाली में,
मुझको कहीं फंसा देखो।

प्रेम यहाँ अपराध हुआ है,
भीतर भय भरा देखो।

आँच में दमका करता है,
उसका प्यार खरा देखो।

जहर मिले जब मुस्कानों में,
खुद में इक् मीरा देखो।

: राकेश जाज्वल्य

Monday, June 22, 2009

भीड़ में इक चेहरा पहचाना


भीड़ मे इक चेहरा पहचाना कैसा लगता है।
मुद्दत मे घर लौट कर आना कैसा लगता है।

उनके आने की उम्मीदें हम भी देखा करते हैं,
वो क्या जानें, हर बार बहाना कैसा लगता है।

आँखों में, दिल में, धड़कन में, बस उसकी ही बातें है,
रग -रग में बस एक फ़साना कैसा लगता है।

नए दौर में किससे पूछें, बीते दिनों की बातें हैं,
किसी के वादों पर मर जाना कैसा लगता है।

आँगन में है अमलताश, गुलमोहर भी, कचनार भी,
उस पर अब उनका शरमाना, कैसा लगता है.

मेरा होना क्या है तुम्हारे बिना.


मेरा होना क्या है तुम्हारे बिना।
जैसे सूनी  आँखे बिना बात के ,
जैसे सूना  पथ बिना साथ के।
जैसे बादल कोई बिना नमी के,
जैसे पौधा कोई बिना जमीं के.
मेरा रोना क्या है तुम्हारे बिना.
एक पंखुडी जो फूल पर रही नहीं,
एक बात जो होठों ने कही नहीं,
एक चाँद अधूरा फ़लक पर आया नहीं,
एक ख्वाब अधूरा पलक पर छाया नहीं,
मेरा खोना क्या है तुम्हारे बिना।
थी ख़ुशी कोई जब पास थे तुम ,
थी हसीं कोई जब साथ थे तुम,
थी बात कोई सब बातों में,
थी चाँदी- चाँदी रातों में...
मेरा सोना क्या है तुम्हारे बिना.

मेरा होना क्या है तुम्हारे बिना.
:राकेश जाज्वल्य, 29.04.2009

जब जिंदगी में सच्चे यारों की बात होगी

जब जिंदगी में सच्चे यारों की बात होगी,
यह आदमी के सिर्फ ख्यालों की बात होगी।

तुझे ढूंढ़ता फिरता है जो, नाकाम ग़र हुआ,
ता-उम्र फिर तो सिर्फ प्यालो की बात होगी।

निगाह ना मिला सका अपने ही रूह से,
कैसे किसी से रु-ब-रु सवालों की बात होगी।

अहसास खुशनुमा सा सताता है रात भर,
कल दिन फिर निकलेगा उजालों की बात होगी।

महफ़िल में होंगे चर्चे, जब भी किसी के प्यार के,
तेरे ही करतब- कमालों की बात होगी.

: राकेश जाज्वल्य 22.06.2009

Monday, June 1, 2009

पहली बारिश


आज मुझे बारिश की
पहली बूंदों ने छुआ है,
मेरा दिल कह रहा है -
ये तेरी ही दुआ है.
भीगे पेड़ ,भीगी जमीं,
भीगा बदन सारा है,
है शोर ये havaon का,
या तुमने मुझे पुकारा है.

Thursday, May 28, 2009

सुनहरी धूप

चलो अपने चेहरे से चेहरा हटा लें,
बाहर भी भीतर की दुनिया सजा लें।
सपनों की थोड़ी बातें करें, आज,
झूठ से, सच से दूरी बना लें।
कोई गीत लिखें या कविता कहें,
शब्दों को, भावों को गले लगा लें।
फूलों को छुएं, बच्चों से खेलें,
आँगन को फिर से अपना बना लें।
गुड्डू को, राजू को फिर से पुकारें,
रूठी हुई रानू को फिर से मना लें.
भैया से कह दें के बाबा बुलाते हैं,
फिर परदे में छुपकर उनको डरा दें,
गर्मी की दोपहर में चुपके से भागें,
गुल्लक के पैसों से पतंगें उड़ा लें.
कालेज में अब भी है, तिवारी जी की कैंटीन,
चलो शानू-मानू को समोसे दिला दें.
निन्नी को, निशु को, राशि को- आशी को,
पढ़ते ही रहने की अब न सज़ा दें।
सप्ताह भर की लेकर छुट्टी ऑफिस से,
घर में रहें और घर का मज़ा लें.
माना के आज अपने साथ नहीं माँ,
तो बच्चों को उनकी कहानी सुना दें.
समय जो बीता तो लौटता नहीं कभी,
इसके हर पल में ज़िन्दगी बिता दे.
:राकेश जाज्वल्य

बचपन है नींदें है

बचपन है, नींदे हैं, कहानियाँ हैं,
जवानी है, रतजगे हैं, नादानियाँ हैं।

किसके सपने मुझे जगातें हैं रात भर,
मेरे जिस्म में यह किसकी निशानियाँ हैं।

दिल तो वाकिफ है, सारी नाराजगियों से मगर,
इन लबों को खुलने में कुछ परेशानियाँ हैं।

आँखों में भी देखा, थोडी नमीं सी थी,
किस्मत की यह सारी बदमाशियाँ हैं।

सच है अब जीना यहाँ आसां नहीं रहा,
पर मौत की भी अपनी दुश्वारियां हैं।

जाते मुझको वह कुछ तो दे गया,
मेरे हिस्से में अब उसकी तन्हाईयाँ हैं.
:
rakesh jajvalya.