Friday, December 28, 2012


अपनी आँखों में ये मंज़र सम्हाल कर रक्खूँगा.
मैं कश्तियों में समन्दर सम्हाल कर रक्खूँगा.
तुम्हारा साथ जितनी देर, बस उतनी है ज़िन्दगी,
मैं पल ये सारे, उम्र भर सम्हाल कर रक्खूँगा.

Apni aankho.n me ye manzar samhal kar rakkhunga.
main kashtiyo.n me samander samhal kar rakkhunga.
tumhara saath jitni der ............. bas utni hai zindagi,
main pal ye saare, umra bhar samhal kar rakkhunga.

: राकेश जाज्वल्य 26.12.2012

Thursday, December 27, 2012

टूटकर तारा जमीं पर फिर गिरेगा कहीं.......
किसी ने दिल से अधूरे चाँद की ख्वाहिश की है.

: राकेश जाज्वल्य 27.12.12

Thursday, December 6, 2012

इक ख़ूबसूरत याद का........ यूँ बीच राह में मिलना,
बारिश की इक शाम जैसे..... सूरजमुखी का खिलना. 

वो कालेज वाली चौक पर.. इक दुकान थी गपशप की,
गुजरना तेरी गलियों से.. बस बतियाते बे-मतलब की.


औधें पड़े - पड़े बिस्तर पर.. अक्सर ताका करते छत,
अधखुली पलकों पर सुनते..... तेरे सपनो की आहट.

उगती सुबहें, ढलती शामें ...... लता-किशोर के गाने,
..............................
....... तेरी याद के सौ बहानें.
 
: राकेश जाज्वल्य.

Friday, November 9, 2012

.............भला  कब
अकेला होता हूँ मैं,

कागज़, पत्ते, फूल, धूल,
खुशबु, धूप, बारिश, साँसें
सब तुम्हारी याद की
वज़हें बन जाती हैं

* राकेश जाज्वल्य. 07.11.12

Saturday, November 3, 2012

मैं न भी चाहूँ......... फिर भी ये यकीं है मुझको,
मेरी नाराज़गी हार जाएगी तेरी मुहब्बत के आगे.

: राकेश जाज्वल्य. 03.11.2012

Thursday, October 25, 2012

साथ चाय की प्याली के....


गुजरेगा दिन आज फिर ख़ुशगवार मेरा,
साथ चाय की प्याली के तेरी याद आ गयी.

: राकेश जाज्वल्य 26.10.2012

Friday, October 19, 2012

मेरे बटुए में तुमको बस मिलेंगें नोट खुशियों के,
मैं सब चिल्हर उदासी के अलग गुल्लक में रखता हूँ.

: राकेश जाज्वल्य. 12.10.2012


Saturday, September 29, 2012

बिना शीर्षक..
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मुझसे जलाया न गया,
मुझसे बहाया न गया.
पर कभी-कभी मुझे भी 

सच लगता है,
जब...
लोग कहते हैं कि..
मेरे बागीचे के गुलाबों से..
सियाही* की खुश्बू आती आती है. 


: राकेश जाज्वल्य. 29.09.2012

bina shirshak....
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mujhse jalaya na gaya,
mujhse bahaya na gaya.
par kabhi-kabhi mujhe bhi
sach lagta hai,
jab..log kahte hai ki...
mere bagiche ke gulabon se..
siyahi* ki khushboo aati hai.


: rakesh jajvalya. 29.092012

Wednesday, September 19, 2012


वही मंजिल है लेकिन क्यूँ.. ये वो मंज़र नहीं लगता.
कशिश हर शय में है लेकिन कोई बेहतर नहीं लगता.
वही कमरे, वही आँगन...... वही सरगोशियाँ लेकिन,
नहीं हो तुम अगर घर में तो घर फिर घर नहीं लगता.


Vahi manzil hai lekin kyun ye vo manzar nahi lagta.
kashish har shay me hai lekin koi behtar nahi lagta.
Vahi kamre, vahi aangan, vahi sargoshiyan lekin,
nahin ho tum agar ghar me to ghar fir ghar nahi lagta.

: राकेश जाज्वल्य 
rakesh jajvalya 01.08.2012 

Saturday, July 28, 2012



कितनी भी कोशिश करें, चाहें....पी लें.
सूखती नहीं मगर खारे पानी की झीलें.

* राकेश जाज्वल्य. 26.07.2012

Saturday, July 21, 2012

तू जब भी साथ हो.......

तू जब भी साथ हो तो दिन में चम्पई रात आती है.
तू हंस दे खिल-खिलाकर, जून में बरसात आती है.
कोई लड़की हथेली पर किसी का नाम लिख -लिखकर, 
जो दुनिया से छिपाती है... तो तेरी याद आती है.

tu jab bhi saath ho to din me champai raat aati hai.
tu hans de khil-khilakar..... jun me barsaat aati hai.
koi ladki hatheli par kisi ka naam likh-likhkar,
jo duniya se chhipati hai ..... to teri yaad aati hai.

: राकेश जाज्वल्य. 21.07.2012

Friday, July 13, 2012


तुम्हारे लिए....... (nai ghazaal )
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यूँ तो अब तेरी जानिब....कोई राह नहीं जाती. 
तेरी गली में मरने की लेकिन चाह नहीं जाती.


फूल ने इक दिन .. हवाओं से कहा- ले शुक्रिया !
तेरे बिन ख़ुश्बू मेरी.. उसके पनाह नहीं जाती.


क्या सही  है, क्या ग़लत, इश्क़ का ये मुआमला,
यारों खुद दिल तक मेरे , मेरी सलाह नहीं जाती. 

yun to ab teri janib  koi raah nahi jaati.
teri gali me marne ki lekin chaah nahi jaati.


phul ne ik din hawaon se kaha - le shukriya !
tere bin khushbu meri ..uske panah nahin jaati.


kya sahi hai, kya galat, ishk ka yah muaamala,
yaaron khud dil tak mere, meri salah nahin jati.

: राकेश जाज्वल्य.  rakesh jajvalya. 13.07.2012.

Thursday, June 14, 2012



ऐ वक्त ! अगर बनकर सूरज तू कड़ी धूप बरसाता है, 
तो हम भी समंदर हैं, हमें बादल का हुनर भी आता है.


ae vakt ! agar bankar suraj tu kadi dhoop barsaata hai,
to hum bhi samander hain, hamen badal ka hunar bhi aata hai.


* राकेश जाज्वल्य 13.06.2012

Monday, June 11, 2012



जो तेरी "जली-कटी" ख़त्म हो गयी हो, ऐ ज़िन्दगी !,
तो थोड़ी देर मैं भी अपना "कलेजा" जला लूँ.

jo teri " jali-kati" khatm ho gayi ho, Ae zindagi !,
to thodi der main bhi apna "kaleja" jala lun.

: राकेश जाज्वल्य. 12.06.12

Thursday, June 7, 2012



रहे ज़हन में अगर, वक्त पर काम आती है,
नाराज़गी माँ की महज़ नाराज़गी नहीं होती.

rahe zahan me agar, vakt par kaam aati hai,
narazgi maa ki mahaz narazgi nahin hoti.

: राकेश 07.06.2012

Wednesday, June 6, 2012

main muhabbat sajane chala tha,
Zindagi be-tarteeb ho gai. 


मैं मुहब्बत सजाने चला था,
ज़िन्दगी बे-तरतीब हो गई.


: राकेश 31.05.2012

Friday, May 25, 2012

सीधी-सीधी बात है....


मीठी धूप हथेलियों में...... अब के भर ली जाये.
सीधी-सीधी बात है....... मुहब्बत कर ली जाये.


पूरा दिन बेचेनी वाले...... लम्हे थामे रहता हूँ, 
खुरची -खुरची नींदों वाली रात भी धर ली जाये .


मुझको भी मालूम है कि तुम दाल जलाया करती हो,
क्यूँ न यह इल्ज़ाम आज से अपने सर ली जाये. 


आसमां में छेद करें या... उड़ें जमीन के भीतर,
ख्वाब कभी आँखों के भी..हद से बाहर ली जाये. 


सीधी-सीधी बात है ..... 



: राकेश 25.05.12

Wednesday, May 23, 2012

दिल हमारा ......


दिल हमारा सांस गिनते थक गया .
ख़त्म क्यूँ होता नहीं ये सिलसिला.

उफ़ वो ऊँगली, उफ़ वो खंज़र क्या कहें, 
उनके हाथों मरने में क्या लुत्फ़ था.


हमने कल उनके सभी ख़त फाड़ कर, 
अपनी ख़ामोशी से यूँ बदला लिया.  


होते- होते इक हकीकत रह गयी,
बनते- बनते इक फ़साना रह गया. 


यूँ लगा जैसे  बिखरने हम लगे, 
हम से वो इतने तकल्लुफ से मिला.

: राकेश जाज्वल्य. 24.05.12

Thursday, April 26, 2012

जी रहा हूँ मैं, अब भी तुम्हारे बिन,
क्या अब भी सोचती हो-" तुम्हे याद नहीं करता" ?


: राकेश. 26.04.2012

Saturday, April 21, 2012

और.. क्योकि हम किसी भी तरफ नहीं.........


यह सुबहो-शाम की नाज़ुक मिज़ाजी के दौर से बाहर आने का वक्त है.
गर्म हवाओं ने पेशानी पर लिखी तक़दीर के सफ्हे झुलसा दिए हैं,
मेरी जाँ! .. यह भरी दोपहरी अब आदमी से आदम में बदल जाने का वक्त है.

हुकुम है आकाओं का..बंदूकों और सिक्कों से नयी दुनिया बनाई जाये.

हुकुम रहनुमाओं का भी है...वोटों और नोटों से हर राह सजाई जाये.

जंगलो में मिटटी के नीचे रोटियां दबायीं है किसी ने,
यहाँ के पेड़ों पर ख्वाबों के चीथड़े लटकते है.

कि...नशा अब यहाँ सल्फी में नहीं...लहू में है.

यहाँ की हवाओं ने भी अब अपने रंग बदल लिए हैं.....
मेरी जान!.. यह सुनहरी शाम नहीं...के सूरज डूब रहा हो क्षितिज पर,
यह सांसों के रुकने से हरीतिमा के चेहरे पर उभर आई लालिमा है.

बावजूद ... .. अजगरो के जबड़ों में फंसे हम... अक्सर हिरणों की हँसी हँसते हैं,
कल रात हम... अपने ही आँगन में......
महुआ की उदास गंधों के साथ,
...कटे, पके..... और .... खा लिए गए.

अब यहाँ चैन से जीना मुश्किल है....और...चैन से मरना दूभर.


सूखे-भूरे पत्तों पर बूटों की धीमी आवाजों और कोयल की तेज़ कूकों के बीच..जैसे सारे अंतर मिट गए हों... जागने और सोने के, हँसने और रोने के, काटने और बोने के.

और.. क्योकि हम किसी भी तरफ नहीं... इसलिए... मारे जायेंगे... दोनों ही तरफ से.

: राकेश  जाज्वल्य. २५.०३.२०११.
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Monday, April 16, 2012

झूठ है...... कि तुझ से कोई वास्ता नहीं,
इन दिनों मुझको मगर, खुद का पता नहीं.


तुम मिल जाओ अगर मुझको... तो  खुद  का  पता मिले.

: राकेश जाज्वल्य. 16.04.2012
तुम नहीं आये.... तो सोचता है..... आ नहीं पाए ,
इस दिल को भी ख़ुश-फहमियों के हज़ार बहाने हैं.


: राकेश जाज्वल्य. 16.04.2012.

Tuesday, March 6, 2012

कैसे  उन  शोख़ निगाहों  में 
मैं  डूबे बिना उबर पाता,

कुछ ऐसे देखा था उसने,
न मरता मैं तो मर जाता.

* राकेश जाज्वल्य .  ०७.०३.१२
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Sunday, March 4, 2012

वो मेरे नखरे उठा रहा था.......

वो मेरे नखरे उठा रहा था.
यूँ इश्क़ या रब जता रहा था.

है खुद को खोना भी खुद को पाना,
वो मुझ से मुझको  चुरा रहा था.

कि हो सके राह-ए-रूह रौशन,
वो ज़िस्म अपना जला रहा था.

वो एक पौधा या यूँ भी कह लें,
उम्मीद आँगन लगा रहा था.

वो घांस सा झुक गया तभी तो,
तूफानों में भी बचा रहा था.

मैं ख्व़ाब सा पल रहा था लेकिन,
वो नींद अपनी बहा रहा था.

थे चंद लम्हों के दिल के रिश्ते,
वो उम्र भर जो निभा रहा था.

छिपा रहा था मैं हर्फ़ जिनसे,
वो उनको किस्से बता रहा था.

वो कल मुहब्बत की रौ में बहकर,
दीवारें घर की ढहा रहा था.

वो मेरी ग़ुरबत पे हँस गया था,
मैं किश्त जिसके चूका रहा था.

* राकेश जाज्वल्य. 11.02.12
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Monday, January 30, 2012

फिर नैनों ने चाल चली है.... (गीत)

फिर नैनों ने चाल चली है,
हो सके तो बचना.
तू ना फंसना चालों में
दिल तू ना फंसना...
तू ना फंसना धोखे में
दिल तू ना फंसना....

१.
हल्की- हल्की बूंदा-बांदी,
भीगा-भीगा मौसम.
गाल के गुलाबों पे
उगते- ढलते शबनम.
कारी- कजरारी बतियों से..
चाहे तुझको डसना....तू ना फंसना...
२.
फेंकें ये निगाहें,
कभी हँस के बुलाएँ.
गोल- मोल बोलें,
कभी आँखें दिखाएँ.
इनके सारे नखरे झूठे..
कोई कहानी सच-ना....तू ना फंसना...
३.
कितने प्यारे-प्यारे लगें,
नैनों के तमाशे.
चाशनी में शक्कर की,
नीम के बताशे.
इनके तिरछे बोल नशीले..
सोच-समझकर चखना....तू ना फंसना...

फिर नैनों ने चाल चली है,
हो सके तो बचना.
तू ना फंसना चालों में
दिल तू ना फंसना.

: राकेश जाज्वल्य. २२.०१.२०१२.

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Saturday, January 21, 2012

नम निगाहें लिए...... मुस्कुराती रही...

नम निगाहें लिए...... मुस्कुराती रही.
इक सदा अनसुनी.... याद आती रही.

अब कहाँ जाऊं मैं ....अपनी खताएँ लिए,
पहले सब गलतियाँ... माँ छिपाती रही.

बिगड़े मौसम में भी... लहरों पर बढ़ चली,
कश्ती तूफ़ान को..... आजमाती रही.

हमसफ़र बन के वो... साथ जब भी चले,
राह खुद मंजिलों....को दिखाती रही.

बात बढ़ भी गयी..... बात ही बात में,
बात ही बात में...... बात जाती रही.

ख्वाह म'ख्वाह पड़ गया.... इश्क़ मेरे गले,
ख्वाहिशे- ख़ुदकुशी.. थी जो जाती रही.

* राकेश जाज्वल्य.
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