Wednesday, July 27, 2011

सरहद-सरहद अनबन क्यूँ हो...

भीगा-भीगा दामन क्यूँ हो.
रूठा-रूठा सा मन क्यूँ हो.

हों कमरे विस्तारित लेकिन,
कटा-कटा सा आँगन क्यूँ हो.

प्यार की ठंडी छांह मिले तो,
रुखा-रुखा बचपन क्यूँ हो.

मीठी-मीठी हो गर बतियाँ,
खट्टा-खट्टा सा मन क्यूँ हो.

खिली-खिली हर सूरत झलके,
टूटा-फूटा दर्पण क्यूँ हो.

महके सोंधी-सोंधी धरती,
सरहद-सरहद अनबन क्यूँ हो.

साफ़-साफ़ हो दिलों के रिश्ते,
दामन-दामन उलझन क्यूँ हो.

: राकेश जाज्वल्य. ०१.०७.२०११.
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Friday, July 15, 2011

उनकी गलियों से आना-जाना है...

उनकी गलियों से आना-जाना है.
यह भी जीने का इक बहाना है.

जो सदा दिल की अनसुनी लौटे,
उनका आँखों में ही ठिकाना है.


दिल्लगी ही सही, कहता तो है,
जो भी वादा किया निभाना है.


जब भी देखो क़रार आता है,
उनकी आँखें हैं, दवाख़ाना है.


कभी आता था हाथ जोड़े हुए,
अब ख़ुदाओं सा जिसका बाना हैं.


अब किताबों में ख़त मिलें कैसे,
छोटे संदेशों का ज़माना है.


आँखों से बहते ग़ज़ल कहते हैं,
जब  भी रोना है,  गुनगुनाना है.


: राकेश जाज्वल्य. १३.०३.२०११.