Tuesday, May 10, 2011

मुहब्बत.....

काँच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.



फिर से सिरहाने लौट कर आई,
रात के आधे ख़्वाब के जैसी.


सूनी आँखों में गुमशुदा चेहरा,
या कि..चटके गुलाब के जैसी.


खुली पलकों की अधखुली बातें,
गीले अधरों के कांप के जैसी.


मन के गुम-सुम, उदास कोने में,
किसी ईश्वर के जाप के जैसी.


कांच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.


: राकेश जाज्वल्य. १०.०५.२०११.
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