जवानी है, रतजगे हैं, नादानियाँ हैं।
किसके सपने मुझे जगातें हैं रात भर,
मेरे जिस्म में यह किसकी निशानियाँ हैं।
दिल तो वाकिफ है, सारी नाराजगियों से मगर,
इन लबों को खुलने में कुछ परेशानियाँ हैं।
आँखों में भी देखा, थोडी नमीं सी थी,
किस्मत की यह सारी बदमाशियाँ हैं।
सच है अब जीना यहाँ आसां नहीं रहा,
पर मौत की भी अपनी दुश्वारियां हैं।
जाते मुझको वह कुछ तो दे गया,
मेरे हिस्से में अब उसकी तन्हाईयाँ हैं.
:rakesh jajvalya.
:rakesh jajvalya.
1 comment:
This is my favourite, I like it most
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