Sunday, August 22, 2010

...के नींद तुमको फिर नहीं आएगी उम्र भर.

यह लम्हें फिर ना रात दोहराएगी उम्र भर.
बस याद इन लम्हों की अब आएगी उम्र भर.

यह सोच कर तुम आज इन बांहों में सोना,
के नींद तुमको फिर नहीं आएगी उम्र भर.

कभी उसकी चिट्ठियों में थी घर आने की ख्वाहिश,
घर भर को अब ये बात सताएगी उम्र भर.

क्यूँ तुमने रख दिया मेरे पहलू में चाँद को,
अब रात क्या फ़लक पे सजाएगी उम्र भर।

कुछ इश्क की दुनिया में हों तेरे भी तजुर्बे,
या तू भी सुनी बात सुनाएगी उम्र भर.

: राकेश जाज्वल्य. 20.08.10
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Thursday, August 5, 2010

या कि तू या धूप, तितली.....

जब से तेरी निगाह में खोने लगा हूँ मैं।
क्या था और क्या अब होने लगा हूँ मैं।

तू बन के ख़्वाब शायद आ जाए इत्तेफाकन,
आँखें रख  कर  अधखुली सोने लगा हूँ मैं।

अच्छा  कि  अब ये  मौसम बारिश का आ गया,
मुश्किल हुआ ये कहना कि  रोने लगा हूँ मैं।

 है  कैसे भला  मुमकिन , मैं हो  जाऊं तुम,
नाहक ही नीम- सपने संजोने लगा हूँ मैं।

या कि तू या धूप, तितली, या हँसी या फूल,
कुछ दिल के कागजों में बोने लगा हूँ मैं।

* राकेश जाज्वल्य
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Sunday, August 1, 2010

* दोस्ती के दिन........*

कॉलेज के वो प्यारे साथी और मस्ती के दिन।
याद रखेंगें बरसों बरस हम दोस्ती के दिन।

सिगरेट के वो धुओं के छल्ले, प्यारे रतजगे,
उसके शहर की रात और मेरी बस्ती के दिन।

तोहफे में कभी घड़ियाँ, बाली, ऐसी दरियादिली,
कभी पार्टियाँ उधारी की, फाका-मस्ती के दिन।

स्कूल के बस्ते से लेकर कॉलेज बैग तलक,
अपने काँधों टंगे रहे ऊँची हस्ती के दिन।

कभी बीच समंदर तूफां के बाँहों में डाले बांह,
कभी डगमगाए साहिल पर अपनी कश्ती के दिन।

: rakesh jajvalya। ०१.०८ .२०१०
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