Sunday, August 22, 2010

...के नींद तुमको फिर नहीं आएगी उम्र भर.

यह लम्हें फिर ना रात दोहराएगी उम्र भर.
बस याद इन लम्हों की अब आएगी उम्र भर.

यह सोच कर तुम आज इन बांहों में सोना,
के नींद तुमको फिर नहीं आएगी उम्र भर.

कभी उसकी चिट्ठियों में थी घर आने की ख्वाहिश,
घर भर को अब ये बात सताएगी उम्र भर.

क्यूँ तुमने रख दिया मेरे पहलू में चाँद को,
अब रात क्या फ़लक पे सजाएगी उम्र भर।

कुछ इश्क की दुनिया में हों तेरे भी तजुर्बे,
या तू भी सुनी बात सुनाएगी उम्र भर.

: राकेश जाज्वल्य. 20.08.10
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