मैंने माना मेरी जानां, कि चलते रहना है बहुत मुश्किल,
पर जो मंज़िल पर हो तुम, तो कदम सुनते नहीं मेरी.
सात जनमों की ही तो बात है, इक सफ़र मैं भी पूरा कर लूँ.
: राकेश जाज्वल्य
२५.०२.२०११.
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पर जो मंज़िल पर हो तुम, तो कदम सुनते नहीं मेरी.
सात जनमों की ही तो बात है, इक सफ़र मैं भी पूरा कर लूँ.
: राकेश जाज्वल्य
२५.०२.२०११.
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1 comment:
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
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