Friday, February 25, 2011

सफ़र....

 
मैंने माना मेरी जानां, कि चलते रहना है बहुत मुश्किल,
पर जो मंज़िल पर हो तुम, तो कदम सुनते नहीं मेरी.

सात जनमों की ही तो बात है, इक सफ़र मैं भी पूरा कर लूँ.

: राकेश जाज्वल्य
२५.०२.२०११.
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1 comment:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|