कैसे उन शोख़ निगाहों में
मैं डूबे बिना उबर पाता,
कुछ ऐसे देखा था उसने,
न मरता मैं तो मर जाता.
* राकेश जाज्वल्य . ०७.०३.१२
---------------------------------
मैं डूबे बिना उबर पाता,
कुछ ऐसे देखा था उसने,
न मरता मैं तो मर जाता.
* राकेश जाज्वल्य . ०७.०३.१२
---------------------------------
No comments:
Post a Comment