Tuesday, March 6, 2012

कैसे  उन  शोख़ निगाहों  में 
मैं  डूबे बिना उबर पाता,

कुछ ऐसे देखा था उसने,
न मरता मैं तो मर जाता.

* राकेश जाज्वल्य .  ०७.०३.१२
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