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हौले से नमी वाली इक फूंक मारें.
चाँद की आखों से चलो धूल झारें.
अब चेहरा तुम्हारा कुछ साफ़ नज़र आता है.
: राकेश जाज्वल्य. 10.03.2011
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हौले से नमी वाली इक फूंक मारें.
चाँद की आखों से चलो धूल झारें.
अब चेहरा तुम्हारा कुछ साफ़ नज़र आता है.
: राकेश जाज्वल्य. 10.03.2011
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2 comments:
खूबसूरत त्रिवेणी
बहुत सुन्दर ख्याल्।
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