कह रही थी रात सुबह से जो सुबह-सुबह,
तुम्हारी ही खुश्बुओं की कुछ बात थी शायद.
....पूरा दिन हर-श्रृंगार लाल-पीला होता रहा.
: राकेश.
----------------------------------------------------
तुम्हारी ही खुश्बुओं की कुछ बात थी शायद.
....पूरा दिन हर-श्रृंगार लाल-पीला होता रहा.
: राकेश.
----------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment