Tuesday, May 10, 2011

मुहब्बत.....

काँच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.



फिर से सिरहाने लौट कर आई,
रात के आधे ख़्वाब के जैसी.


सूनी आँखों में गुमशुदा चेहरा,
या कि..चटके गुलाब के जैसी.


खुली पलकों की अधखुली बातें,
गीले अधरों के कांप के जैसी.


मन के गुम-सुम, उदास कोने में,
किसी ईश्वर के जाप के जैसी.


कांच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.


: राकेश जाज्वल्य. १०.०५.२०११.
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7 comments:

vandana gupta said...

वाह्……………बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

वाणी गीत said...

काँच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.
रूमानी एहसास को मिले खूबसूरत शब्द ...
सुन्दर !

रश्मि प्रभा... said...

फिर से सिरहाने लौट कर आई,
रात के आधे ख़्वाब के जैसी.
muhabbat kuch aisi... waah

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल

दिगम्बर नासवा said...

कांच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी...

वाह .. क्या खूब मतला है ... क्या लाजवाब ग़ज़ल .. मुहब्बत का एहसास लिए ...

रश्मि प्रभा... said...

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/05/blog-post_21.html#comments

Anju (Anu) Chaudhary said...

काँच पे साँस के भाप के जैसी.
मुहब्बत मीठी-ताप के जैसी.

bahut khub
pyar ka rang wahi jane jisne pyar kiya ho...