भीगा-भीगा दामन क्यूँ हो.
रूठा-रूठा सा मन क्यूँ हो.
हों कमरे विस्तारित लेकिन,
कटा-कटा सा आँगन क्यूँ हो.
प्यार की ठंडी छांह मिले तो,
रुखा-रुखा बचपन क्यूँ हो.
मीठी-मीठी हो गर बतियाँ,
खट्टा-खट्टा सा मन क्यूँ हो.
खिली-खिली हर सूरत झलके,
टूटा-फूटा दर्पण क्यूँ हो.
महके सोंधी-सोंधी धरती,
सरहद-सरहद अनबन क्यूँ हो.
साफ़-साफ़ हो दिलों के रिश्ते,
दामन-दामन उलझन क्यूँ हो.
: राकेश जाज्वल्य. ०१.०७.२०११.
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रूठा-रूठा सा मन क्यूँ हो.
हों कमरे विस्तारित लेकिन,
कटा-कटा सा आँगन क्यूँ हो.
प्यार की ठंडी छांह मिले तो,
रुखा-रुखा बचपन क्यूँ हो.
मीठी-मीठी हो गर बतियाँ,
खट्टा-खट्टा सा मन क्यूँ हो.
खिली-खिली हर सूरत झलके,
टूटा-फूटा दर्पण क्यूँ हो.
महके सोंधी-सोंधी धरती,
सरहद-सरहद अनबन क्यूँ हो.
साफ़-साफ़ हो दिलों के रिश्ते,
दामन-दामन उलझन क्यूँ हो.
: राकेश जाज्वल्य. ०१.०७.२०११.
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2 comments:
प्यार की ठंडी छांह मिले तो,
रुखा-रुखा बचपन क्यूँ हो.
bahut sahi
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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