खुद से मिलना भी बात भी करना.
तुम भी कोशिश ये जरा सी करना.
वो ना दर से ही लौट जाये कहीं,
घर के कमरों में रौशनी करना.
कैसे कह दूँ वो याद आता नहीं,
मुझसे बातें ना क़ुफ्र की करना.
कुछ तो जादू है उसके खंज़र में,
दिल ने टाला है ख़ुदकुशी करना.
रात आँखों में चाँद का घुलना,
उफ़...ये यादों से दोस्ती करना.
* राकेश जाज्वल्य. ०७.०८.२०११
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तुम भी कोशिश ये जरा सी करना.
वो ना दर से ही लौट जाये कहीं,
घर के कमरों में रौशनी करना.
कैसे कह दूँ वो याद आता नहीं,
मुझसे बातें ना क़ुफ्र की करना.
कुछ तो जादू है उसके खंज़र में,
दिल ने टाला है ख़ुदकुशी करना.
रात आँखों में चाँद का घुलना,
उफ़...ये यादों से दोस्ती करना.
* राकेश जाज्वल्य. ०७.०८.२०११
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2 comments:
खूबसूरत गज़ल
बहुत सुन्दर गज़ल।
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