Saturday, January 21, 2012

नम निगाहें लिए...... मुस्कुराती रही...

नम निगाहें लिए...... मुस्कुराती रही.
इक सदा अनसुनी.... याद आती रही.

अब कहाँ जाऊं मैं ....अपनी खताएँ लिए,
पहले सब गलतियाँ... माँ छिपाती रही.

बिगड़े मौसम में भी... लहरों पर बढ़ चली,
कश्ती तूफ़ान को..... आजमाती रही.

हमसफ़र बन के वो... साथ जब भी चले,
राह खुद मंजिलों....को दिखाती रही.

बात बढ़ भी गयी..... बात ही बात में,
बात ही बात में...... बात जाती रही.

ख्वाह म'ख्वाह पड़ गया.... इश्क़ मेरे गले,
ख्वाहिशे- ख़ुदकुशी.. थी जो जाती रही.

* राकेश जाज्वल्य.
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2 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अच्छा काफ़िया मिलाया है। आखरी शेर तो लाजवाब है।

RAKESH JAJVALYA राकेश जाज्वल्य said...

ललित भैया ..... आप का यहाँ आना .. मेरे लिए एक सुखद अनुभूति है.. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.