वो मेरे नखरे उठा रहा था.
यूँ इश्क़ या रब जता रहा था.
है खुद को खोना भी खुद को पाना,
वो मुझ से मुझको चुरा रहा था.
कि हो सके राह-ए-रूह रौशन,
वो ज़िस्म अपना जला रहा था.
वो एक पौधा या यूँ भी कह लें,
उम्मीद आँगन लगा रहा था.
वो घांस सा झुक गया तभी तो,
तूफानों में भी बचा रहा था.
मैं ख्व़ाब सा पल रहा था लेकिन,
वो नींद अपनी बहा रहा था.
थे चंद लम्हों के दिल के रिश्ते,
वो उम्र भर जो निभा रहा था.
छिपा रहा था मैं हर्फ़ जिनसे,
वो उनको किस्से बता रहा था.
वो कल मुहब्बत की रौ में बहकर,
दीवारें घर की ढहा रहा था.
वो मेरी ग़ुरबत पे हँस गया था,
मैं किश्त जिसके चूका रहा था.
* राकेश जाज्वल्य. 11.02.12
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यूँ इश्क़ या रब जता रहा था.
है खुद को खोना भी खुद को पाना,
वो मुझ से मुझको चुरा रहा था.
कि हो सके राह-ए-रूह रौशन,
वो ज़िस्म अपना जला रहा था.
वो एक पौधा या यूँ भी कह लें,
उम्मीद आँगन लगा रहा था.
वो घांस सा झुक गया तभी तो,
तूफानों में भी बचा रहा था.
मैं ख्व़ाब सा पल रहा था लेकिन,
वो नींद अपनी बहा रहा था.
थे चंद लम्हों के दिल के रिश्ते,
वो उम्र भर जो निभा रहा था.
छिपा रहा था मैं हर्फ़ जिनसे,
वो उनको किस्से बता रहा था.
वो कल मुहब्बत की रौ में बहकर,
दीवारें घर की ढहा रहा था.
वो मेरी ग़ुरबत पे हँस गया था,
मैं किश्त जिसके चूका रहा था.
* राकेश जाज्वल्य. 11.02.12
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1 comment:
bhaut hi acchi lagi rachna.....
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