यहाँ हैं.. मेरी ग़ज़लें और कवितायेँ......
कितनी भी कोशिश करें, चाहें..पी लें.....
सूखती नहीं मगर..खारे पानी की झीलें.
Thursday, June 7, 2012
रहे ज़हन में अगर, वक्त पर काम आती है, नाराज़गी माँ की महज़ नाराज़गी नहीं होती. rahe zahan me agar, vakt par kaam aati hai, narazgi maa ki mahaz narazgi nahin hoti. : राकेश 07.06.2012
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