लम्हें कुछ
गुज़र कर भी
गुज़रते नहीं कभी.
कुछ गहरी चोटों
के निशां उभरते
नहीं कभी.
कंकड़ कोई, तिनका
कोई या याद
किसी की,
मोती यूँ ही
निगाह से...... झरते
नहीं कभी.
दरिया- ऐ- इश्क
की भी रवानी
है अनोख़ी
जो डूबते नहीं वो.........
उबरते नहीं कभी.
"लहना"
हो या हो "देव" वो बचपन
की कहानी,
किरदार अपने बीच
के..... मरते नहीं
कभी.
पहुंचे जो गाल तक भी
न आँखों की कोर
से,
वो ख़्वाब उँगलियों से ..... संवरते नहीं कभी.
: © राकेश जाज्वल्य
( सन्दर्भ
: १. लहना सिंह
- "उसने कहा था.",
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
२. देव- "देवदास"
शरत चन्द्र चटोपाध्याय
)
5 comments:
बहुत खूब ... लाजवाब मतला और सभी शेर कमाल के ...
वाह बहुत खूब
Bahut hi shandaar Jajvalyaji. ......diljoi aur aaftaabi noor se labrez
धन्यवाद.. आप सब का.
Dhnayvad..
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