Sunday, April 27, 2014

जब-जब रात उदास हुई है...

जब-जब रात उदास हुई है पास तुम्हारे न आने पर, 
ख़ाब का तकिया रख आया है चाँद नींद के सिरहाने पर. 

फ़िर साँसों की मध्यम लय पर अरमानों ने आह भरी, 
तल्ख़ हक़ीक़त लो फ़िर जीती सुर्ख गुलाबी अफ़साने पर. 

धूप में थोड़ा सीलापन और खुश्क लबों पर मौसिकी, 
बिन तेरे दिन गुजरा जैसे शाम खिली पर विराने पर.

दिल ने मुझसे बिना ईजाज़त अब तक तुझको याद किया, 
यही दुआ है कि न बदले कल यह मेरे समझाने पर.
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©: राकेश जाज्वलय. 26.04.14