Saturday, March 29, 2014

समय (दो कविताएं )

धागा 
समय के साथ 
कमज़ोर ही होता है 
यद्यपि, 
फिर भी... 

यक़ीन है 
कि... 
थामे रखेगा 
इसके दोनों सिरे 
अपने दोनों हाथों से 
समय ही. (1)
-----------------------------------

लौटेगा नहीं 
मगर..
गुजरेगा
फिर -फिर कर 
हर ईक बिन्दु से 

समय, 
कि.. 
अपनी ही 
परिधी के बाहर 
नही है गति 
समय की भी. (2)

-----------------------------------
© राकेश जाज्वल्य.

31.01.2014

No comments: