Tuesday, December 14, 2010

दिल इक ऐसा गुल्लक...



किसने जोड़े हैं गिन गिन के.
तस्वीरों के पीछे तिनके.

 और भला क्या है आँखों में,
कुछ उम्मीदें अच्छे दिन के.

 जो सौदा आँखों का, उसमे
कहाँ बही-खाते धन-ऋण के.

 दादी और नानी की कहानी,
बुद्धू-बक्सा ले गया  छीन  के.

 अपने हिस्से के ही दाने,
चिड़िया ले जाती है  बीन के.

 वो अक्सर भटके मिलते हैं,
दुनिया पीछे चलती जिनके.

 अब ना दरख्तों तले गाँव में,
गूंजा करते बोल ता-धिन के.

 दिल इक ऐसा गुल्लक जिसमे,
सिक्के जमा बीते पल-छिन के.

: राकेश जाज्वल्य. १४.१२.१०
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7 comments:

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दिल इक ऐसा गुल्लक जिसमे,
सिक्के जमा बीते पल-छीन के.


बहुत सुंदरता से यादों के गुम हो जाने का खाका खींचा है ..

Er. सत्यम शिवम said...

बहुत खुब प्रस्तुति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित...आज की रचना "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुती!

रंजना said...

वाह ...वाह...वाह...

क्या बात कही...

लाजवाब रचना...

सभी पद लाजवाब...

केवल एक बदलाव कर लें तो बड़ा अच्छा रहेगा..

अंतिम पद में 'पल-छीन' के बदले 'पल-छिन' कर लें...

अनुपमा पाठक said...

sundar shabd vimb!

RAKESH JAJVALYA राकेश जाज्वल्य said...

aap sab ka shukriya...aabhar.