मेरे लबों पर आई है,
तुझ सी एक रुबाई है।
जब से तेरा साथ हुआ है,
गुस्से में तन्हाई है।
मौसम सर्द अकेलेपन का,
तेरी याद रजाई है।
नर्म, मुलायम, भीनी-भीनी,
सांसें हैं, पुरवाई है।
करवट बदली है मौसम ने,
या तेरी अंगडाई है।
कुछ है दुनिया की मज़बूरी,
कुछ दिल भी हरजाई है।
रिश्ते ठन्डे हुए बर्फ से,
किसने आग लगाईं है।
धुली-धुली लगती है आँखें,
तू फिर रो कर आई है।
: राकेश जाज्वल्य २६.११.२०१०
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2 comments:
''सिक्के जमा बीते पल-छीन के''. शायद आपने लिखना चाहा है ''पल-छिन के''. यदि ऐसा है तो संशोधन कर लें, अन्यथा अर्थ बदल जा रहा है.
ginti minti me shayd kuch kami ho par bhav achhe hai gazal ke....:)
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