तुझ को पाने का ज़रिया है.
खुद को भी यूँ याद किया है.
था दरिया में चाँद कल तलक
आज चाँद में इक दरिया है.
साँझ अगरबत्ती-सी महकी,
रात भी ईक जलता दिया है.
पँख फैलाये..... नन्हे पंछी,
सोच रहे हैं... अंबर क्या है.
तुमसे मिलकर दिल ने सोचा,
अच्छी है..... जैसी दुनिया है.
देर से लौटूं..... कान उमेठे.
दादी- सी.... मेरी बिटिया है.
याद की चादर ओढ़ के जगना,
तुझ बिन सोने से बढ़िया है.
: राकेश जाज्वल्य. 11.11.11.
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खुद को भी यूँ याद किया है.
था दरिया में चाँद कल तलक
आज चाँद में इक दरिया है.
साँझ अगरबत्ती-सी महकी,
रात भी ईक जलता दिया है.
पँख फैलाये..... नन्हे पंछी,
सोच रहे हैं... अंबर क्या है.
तुमसे मिलकर दिल ने सोचा,
अच्छी है..... जैसी दुनिया है.
देर से लौटूं..... कान उमेठे.
दादी- सी.... मेरी बिटिया है.
याद की चादर ओढ़ के जगना,
तुझ बिन सोने से बढ़िया है.
: राकेश जाज्वल्य. 11.11.11.
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3 comments:
खूबसूरत गज़ल
पँख फैलाये..... नन्हे पंछी,
सोच रहे हैं... अंबर क्या है.
waah
बहुत खूब नज़रिया है।
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