Monday, June 11, 2012



जो तेरी "जली-कटी" ख़त्म हो गयी हो, ऐ ज़िन्दगी !,
तो थोड़ी देर मैं भी अपना "कलेजा" जला लूँ.

jo teri " jali-kati" khatm ho gayi ho, Ae zindagi !,
to thodi der main bhi apna "kaleja" jala lun.

: राकेश जाज्वल्य. 12.06.12

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

क्या बात है ... बहुत खूब

दिगम्बर नासवा said...

जीवन की कडुवी सच्चाई कभी कभी ऐसे भी खत्म हो सके तो आसान है ...