Wednesday, July 29, 2009

हँसी, खुशी, सिसकी / hansi, khushi, siski

हँसी, खुशी, सिसकी या वीराने सा कुछ,
है रात के आगोश में अफ़साने सा कुछ.

बे-तकल्लुफी से सबसे मिलता तो है मगर,
आने में उसके होता है ना आने सा कुछ .

पूरा दिन ही मिठास से लबरेज़ हो गया,
उसकी बातों में है शक्कर दाने सा कुछ.

कभी यूँ ही रूठने से भी होता है फायदा,
मिलता है उन लबों से हर्जाने सा कुछ.

तुम गए, खुशियों का बटुआ ही खो गया,
जेब में बचा फ़कत चार आने सा कुछ.
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hansi, khushi, siski ya virane sa kuchh,
hai rat ke aagosh me afsaane sa kuchh.

be-takllufi se sabse milta to hai magar,
aane me uske hota hai na aane sa kuchh .

pura hi din mithas se labrez ho gaya,
uski baton me hai shakkar dane sa kuchh.

Kabhi yun hi ruthne se bhi hota hai fayda,
milta hai un labon se harjane sa kuchh.

Tum gaye, khushiyon ka batua hi kho gaya
Jeb me bacha fakat chaar aane sa kuchh.
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: राकेश जाज्वल्य.

Saturday, July 25, 2009

तेरी याद के दस बहाने

खुश्बू, बादल, सपने, बातें,
धूप, ग़ज़ल, कुछ दर्द पुराने...
तेरी याद के दस बहाने.

ख्वाबों में है अब भी आती,
इक लड़की हंसती और गाती.
बे- मतलब शरमाया करती,
लिख कर नाम मिटाया करती.
गीत कई गूंजें अनजाने .
तेरी याद के दस बहाने.

तब चर्चाएँ आम थी,
सीने में धड़कती शाम थी.
इक चाँद नुमाया होता था,
जब छत पर साया होता था.
जागी रातों के अफसाने.
तेरी याद के दस बहाने.

उस दिन जब हम जुदा हुए थे,
खुदा से भी हम खफा हुए थे.
भले ही ज़िन्दगी सच होती है,
आँख मगर फिर भी रोती है.
किस्मत फिर से आजमाने.
तेरी याद के दस बहाने.
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: राकेश जाज्वल्य

Thursday, July 23, 2009

फफूँद / Fafoond

जाते जाते जब तुमने
दरवाजे को बंद किया था,
उठकर मैंने उसी वक्त
भीतर से कुण्डी लगा ली थी.

खिड़कियों पर मैंने फ़िर
तेरी ना का पर्दा ताना था,
और कमरे में रोशन बातों की
सारी बाती बुझा दी थी.

तेरे ही ख़त चिपकाये थे
रोशनदानों की कांचों पर,
और चुप का मोटा कम्बल डाला था
दिल की कुछ आवाजों पर.

फैली-बिखरी हर चीजों पर,
मुहब्बत का इक गर्द रहा,
आँखों के रिसते पानी से
घर का हर कोना सर्द रहा.

बे-नींद, बे-ख़्वाब निगाहों पर
अब पलकें दर्द से झुकती है,
और
ज़हन के गीले पैरहन में
तेरी याद फफूँद सी उगती है.
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jate-jate jab tumne
darvaje ko band kiya tha,
uthkar maine usi vakt
bhiter se kundi laga li thi.

kidkiyon par maine fir
teri na ka parda tana tha,
aur kamre me roshan baaton ki
sari bati bujha di thi.

tere hi khat chipkaye the
roshandanon ki kaanchon par,
aur chup ka mota kambal daala tha
dil ki kuchh aavazon par.

faili-bikhri har chizon par
muhbbat ka ik gard raha,
aankhon ke riste pani se
ghar ka har kona sard raha.

be-nind, be-khwab nigahon par
ab palken dard se jhukti hain,
aur
zehan ke gile pairahan me
teri yaad fafund si ugti hai.
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; राकेश जाज्वल्य

Friday, July 17, 2009

गीली धूप के गाँव में / gili dhoop ke gaon me

गीली धूप के गाँव में वह इन्द्रधनुष पर रहती है.
उसकी हंसी से फूल नए रंगों में सजती-संवरती है.

चढ़ती है वह मेरे घर की सीढियाँ भी कुछ इस तरह,
जैसे के आँगन में सवेरे हौले धूप उतरती है.

लहरों से जो खेला करती सूरज संग अटखेलियाँ,
तन्हाई में रातों की वो नदी भी रोया करती है.

उसके होने से जैसे हो जाता हूँ मै शख्स नया,
मेरे होने से कुछ उसकी जुबां भी और निखरती है.

इक हल्की शरारत से उसको जब कोई गीत सुनाता हूँ,
इक हल्की सी मुस्कान नई उसके चेहरे पे बिखरती है.

: rakesh jajvalya

Sunday, July 12, 2009

बैठो जरा / baitho jara

बैठो जरा ठहर कर जाना.
अपना घर है फिर-फिर आना.

इक शहर के हम अजनबी, पर
सोचो तो निकलेगा रिश्ता पुराना.

पलकों पे आँसूं के बादल भी हों तो,
होठों से है सबको हँसना- हँसाना.

जब भी लगे रिश्ते बोनसाई-से,
आँगन में पीपल का पौधा लगाना.

रुमालों पे रातों की लिखी कहानी,
दिन में सभी की नज़र से बचाना.

तेरी ही सोहबत में रक्खा है दिल को,
बिगड़ेगा जब तब-की देखेंगें जानां.
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baitho jara thahar kar jana.
apna ghar hai fir-fir aana.

ik shahar ke hum ajnabi, par
socho to niklega rishta purana.

palkon pe aansu ke badal bhi ho to,
hothon se hai sabko hasna-hasana.

jab bhi lage riste bonsai-se,
aangan me pipal ka paudha lagana.

rumalon pe raton ki likhi kahani,
din me sabhi ki nazar se bachana.

teri hi sohbat me rakkha hai dil ko,
bigdega jab tab-ki dekhenge jana.
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: rakesh jajvalya

Friday, July 10, 2009

बूंद इक बारिश की / Bund ik barish ki

बूंद इक बारिश की उसके जुल्फ पर ठहरी हुई,
खाके बल जैसे के नदिया और भी गहरी हुई.

गालों पर उसके रुकी सी इक अलग मुस्कान है,
चाँद के घर रात जैसे चांदनी ठहरी हुई.

देती है दिल को तसल्ली यूँ तो पूरा दिन मगर,
जाके दरवाजे पे रातों को नजर ठहरी हुई.

तेरी वो चुनरी जो लहराती फिरे थी कल तलक,
आके अब बाँहों में मेरी बे-खबर ठहरी हुई.

है बड़ी मासूम मौसम से तेरी शिकायतें,
आके क्यूँ बरखा मुई मेरी छत पे है ठहरी हुई.
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bund ik barish ki uske julf par thahri hui,
Khake bal jaise ke nadiya aur bhi gahri hui.

galon par uske ruki si ik alag muskan hai,
chand ke ghar rat jaise chandani thahri hui.

Deti hai dil ko tassalli yun to pura din magar,
jake darwaje pe raton ko najar thahri hui.

Teri vo chunri jo lahrati fire thi kal talak,
Aake ab bahon me meri be-khabar thahri hui.

Hai badi masum mausam se teri shikayten,
Aake kyun barkha mui meri chhat pe hai thahri hui.
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:rakesh jajvalya

Saturday, July 4, 2009

कोई अतीत उसका/ koi atit uska

कोई अतीत उसका
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उसकी सूनी निगाहें,
खामोश चेहरा और
बरसो से आले पर टंगी
उसकी संदुकची
उत्सुकता जगाती रही थी,
लगता था की जैसे..
कोई अतीत उसका बरसों से
पलकों में ख्वाब की तरह
दुनिया से, मुझ से और खुद से ही
अपने आप को छुपाये हुए है.
क्या हो सकता है उसमे
मै अक्सर सोचता -
किसी सहेली की याद, भैया की डांट,
माँ की कोई सलाह, पिता की चिंता,
घर-परिवार, कोई ना मिला अधिकार,
या फिर कोई अधुरा प्यार.....शायद.
क्या पता?
फिर इक दिन ..
मैंने वह किया जो मुझे नहीं करना था.
मैंने अकेले में
उसकी वह संदुकची खोली और
खोज निकली उसकी इक डायरी जो थी
बड़ी पुरानी,
धड़कते दिल और कांपती उँगलियों से
मैंने उसके पन्ने पलटे और
खुद भी थोडा सा रोया था
क्योंकि ........
उस खाली डायरी में
सिर्फ इक सुखा गुलाब, इक मोर पंख और
इक पन्ना मुडा हुआ सा था.
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: rakesh jajvalya
05.07.09