Thursday, December 24, 2009

यूँ तो हर रात मुँह-जुबानी है.......


यूँ तो हर रात मुँह-जुबानी है।
देह से भी परे कहानी है।

रूह जलती है सर्द बाँहों में,
कीमतें प्यार की चुकानी है।

उदास धूप और जमाने में,
दर्द की चादरें सुखानी है।

आईना बोलता है यूँ मुझको,
तेरी मेरी-सी जिन्दगानी है।

ये जो तकिये पे गीली रेतें है,
इक समंदर की ये निशानी है।

रिश्ते टूटे तो जाँ निकलती है,
बाकि साँसे तो आनी-जानी है।
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: राकेश जाज्वल्य


Tuesday, December 22, 2009

* नज़रें / nazre.n *

जब भी मिलें उनसे, बचने की सोंचें.
निगाहों के नाख़ून, दिल की खरोचें.
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Jab bhi mile.n unse, bachne ki soche.n,
nigaho.n ke nakhun, dil ki kharoche.n.
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: Rakesh Jajvalya.

Monday, December 21, 2009

आओ ग़म पकाएँ मियाँ....

आओ ग़म पकाएँ मियाँ.
बड़े मजे से खाएँ मियाँ.

दुनिया भी दुनियादारी भी,
हंसकर काम चलायें मियाँ.

झूठी आस पे जिन्दा रहती,
सच की अभिलाषाएँ मियाँ.

मुफ़लिसी के जो शहजादे,
उनकी कहाँ अदायें मियाँ.

नए दौर में सच्ची मुहब्बत?
यूँ ना हमें हंसायें मियाँ.

इक दूजे के दिल से खेलें,
अपना दिल बहलायें मियाँ.

रात भी तेरी, चाँद भी तेरा,
अपनी सारी बलाएँ मियाँ.

आँखें- वांखें, हँसी- वंसी,
प्रेम की सब भाषाएँ मियाँ.
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: rakesh jajvalya.

Wednesday, December 16, 2009

कुछ दिनों पहले मेरी इक बड़ी पुरानी रचना हाथ लगी, शुरूआती दौर की रचना है, स्कुल के टाइम की, यह सोचते हुए पोस्ट कर रहा हूँ कि स्कुल के बाद कालेज के दिनों में भी लिखते रहना चाहिए था :D .

ज़िन्दगी.....
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टुकड़ों-टुकड़ों से मैंने सजा ली है ज़िन्दगी.
कितने जतन से मैंने संभाली है ज़िन्दगी.

छूटा, गिरा और टूट कर बिखर गया,
कांच की ईक नाज़ुक प्याली है ज़िन्दगी.

मौत ने तो कोशिश कम न की मगर,
बेवफा होने से मैंने बचा ली है ज़िन्दगी.

रोते रहिये अपनी ज़िन्दगी को आप,
मैंने आँसुओं में ही पा ली है ज़िन्दगी.

होंगे ग़म लाख मगर, कम नहीं खुशियाँ,
किसी के हँसते गालों की लाली है ज़िन्दगी.

सजाये है मेरी आँखों में ये सितारे किसने,
कि अब तो हर ईक रात दिवाली है ज़िन्दगी.
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: राकेश जाज्वल्य.

Tuesday, December 1, 2009

वो लड़की.... / vo ladki...

जब भी मुस्कुराए वो.
बातों को महकाए वो.

यादें, घुंघरू पायल के,
आँखों ख्वाब बजाये वो.

आँगन चंपा की बेलें,
चंदा माथ सजाये वो.

गुल्लक, मेरे गम का,
जाने कहाँ छिपाए वो.

नमक-डली सा अपना दिल,
रातों को पिघलाए वो.
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jab bhi muskuraye vo.
bato.n ko mahkaye vo.

yaade.n ghungharu paayal ke,
aankho.n khwab bajaye vo.

aangan champa ki bele.n,
chanda maath sajaye vo.

gullak, mere gam ka,
jaane kaha.n chhipaye vo.

namak-dali sa apna dil,
raato.n ko pighlaye vo.
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: राकेश जाज्वल्य.