यूँ तो हर रात मुँह-जुबानी है।
देह से भी परे कहानी है।
रूह जलती है सर्द बाँहों में,
कीमतें प्यार की चुकानी है।
उदास धूप और जमाने में,
दर्द की चादरें सुखानी है।
आईना बोलता है यूँ मुझको,
तेरी मेरी-सी जिन्दगानी है।
ये जो तकिये पे गीली रेतें है,
इक समंदर की ये निशानी है।
रिश्ते टूटे तो जाँ निकलती है,
बाकि साँसे तो आनी-जानी है।
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: राकेश जाज्वल्य
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