Monday, April 19, 2010

दो त्रिवेणियाँ.....


दो त्रिवेणियाँ - तीन पंक्तियों की छोटी सी रचना- प्रस्तुत है,
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बरसात .....
यूँ तुम्हारी मुहब्बत को तरसा हूँ अभी.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ अभी.

चेहरा तुम्हारा भी कुछ भीगा-भीगा लगता है.

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2. घाल -मेल......

खुद को दी आवाज़, कभी जब मैंने तुम्हे पुकारा,
तेरा चेहरा आया नज़र, जब मैंने खुद को निहारा.

मुहब्बत का खेल है....बड़ा निराला घाल-मेल है....

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: राकेश जाज्वल्य.

4 comments:

Anonymous said...

bahut khub.......

Shekhar Kumawat said...

ise pura karo yar bahut sundar he ye


achi rachana he


bahut khub


shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

कविता रावत said...

यूँ तुम्हारी मुहब्बत को तरसा हूँ अभी.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ अभी.
चेहरा तुम्हारा भी कुछ भीगा-भीगा लगता है.
......Pyar ki madhur fuhaar achhi lagi..

rajeev matwala said...

dil ko jo chhu jaye wo shi artho me kavita/gajal hoti hai. isme koi shak nahi ki gajal khoob ban pari hai. likhe rhei, yadi manch par tarannum mei parte hai to nigah me rkhonga. meri shubhkamukai.....Rajeev Matwala
My Vist Site-www.rajeevmatwala.wordpress.com