दो त्रिवेणियाँ - तीन पंक्तियों की छोटी सी रचना- प्रस्तुत है,
--------------------------------------------
१ बरसात .....
--------------------------------------------
१ बरसात .....
यूँ तुम्हारी मुहब्बत को तरसा हूँ अभी.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ अभी.
चेहरा तुम्हारा भी कुछ भीगा-भीगा लगता है.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ अभी.
चेहरा तुम्हारा भी कुछ भीगा-भीगा लगता है.
----------------------------------------------
2. घाल -मेल......
खुद को दी आवाज़, कभी जब मैंने तुम्हे पुकारा,
तेरा चेहरा आया नज़र, जब मैंने खुद को निहारा.
मुहब्बत का खेल है....बड़ा निराला घाल-मेल है....
--------------------------------------------------
: राकेश जाज्वल्य.
4 comments:
bahut khub.......
ise pura karo yar bahut sundar he ye
achi rachana he
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
यूँ तुम्हारी मुहब्बत को तरसा हूँ अभी.
बनकर ओस निगाहों से बरसा हूँ अभी.
चेहरा तुम्हारा भी कुछ भीगा-भीगा लगता है.
......Pyar ki madhur fuhaar achhi lagi..
dil ko jo chhu jaye wo shi artho me kavita/gajal hoti hai. isme koi shak nahi ki gajal khoob ban pari hai. likhe rhei, yadi manch par tarannum mei parte hai to nigah me rkhonga. meri shubhkamukai.....Rajeev Matwala
My Vist Site-www.rajeevmatwala.wordpress.com
Post a Comment