अक्सर तेरे बिन लगते हैं.
जंग - लगे से दिन लगते हैं.
प्रेम की कुंजी बिन जीवन के,
सरल सवाल कठिन लगते हैं.
जब से पोंछा है आखों को,
गीले से पल - छिन लगते हैं.
दिल की बातें कहनी हो तो,
बुद्धू सारे प्रवीण लगते हैं.
दिल के पन्नो पर यादों के,
तीखे - नुकीले पिन लगते हैं.
* राकेश जाज्वल्य. ३०.०६.२०११.
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जंग - लगे से दिन लगते हैं.
प्रेम की कुंजी बिन जीवन के,
सरल सवाल कठिन लगते हैं.
जब से पोंछा है आखों को,
गीले से पल - छिन लगते हैं.
दिल की बातें कहनी हो तो,
बुद्धू सारे प्रवीण लगते हैं.
दिल के पन्नो पर यादों के,
तीखे - नुकीले पिन लगते हैं.
* राकेश जाज्वल्य. ३०.०६.२०११.
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2 comments:
जब से पोंछा है आखों को,
गीले से पल - छिन लगते हैं.
waah
बहुत अच्छी रचना ।
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