Thursday, June 30, 2011

जंग-लगे से दिन लगते हैं...

अक्सर तेरे बिन लगते हैं.
जंग - लगे से दिन लगते हैं.

प्रेम की कुंजी बिन जीवन के,
सरल सवाल कठिन लगते हैं.

 जब से पोंछा है आखों को,
गीले से पल - छिन लगते हैं.

 दिल की बातें कहनी हो तो,
बुद्धू सारे प्रवीण लगते हैं.

दिल के पन्नो पर यादों के,
तीखे - नुकीले पिन लगते हैं.

* राकेश जाज्वल्य. ३०.०६.२०११.
------------------------------


2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

जब से पोंछा है आखों को,
गीले से पल - छिन लगते हैं.
waah

रजनीश तिवारी said...

बहुत अच्छी रचना ।