Saturday, August 8, 2009

रात की छत है खाली

रात की छत है खाली
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रात की छत है खाली, मुझे जगाओ ना,
ख्वाबों! अब तकिये से बाहर आओ ना.

घनघोर घटायें छाईं हैं दिल आँगन में,
तुम मुझ पर छतरी जैसे छा जाओ ना.

चाँद का किसने चेहरा ढांपा चुनरी से,
अब सोने के कंगन भी पहनाओ ना.

बारिश की रातें है कैसी उमस भरी,
बैठो, दिन की कुछ बातें बतलाओ ना.

हँसी से खिलता चेहरा प्यारा लगता हैं,
दुनिया के चेहरे पर हँसी खिलाओ ना.
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: rakesh jajvalya.

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