Sunday, August 23, 2009

याद आते हैं जो दुश्मन...

याद आते हैं जो दुश्मन..
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याद आते हैं जो दुश्मन,हबीब होते हैं,
दिलों के फैसले अक्सर अजीब होते हैं.

ना-खुदा से ना खुदा से कोई शिकवा करना,
अपनी मर्जी से सब अपना सलीब ढ़ोते हैं.

उनकी चाहत मुझे बाँहों में ही दफ़न कर दें,
यारों की शक्ल में मासूम रकीब होते हैं.

जमीं बंजर तो क्या, हौसलों की खादों से,
हम अपने खेतों में अपना नसीब बोतें हैं.

कड़ी मेहनत से मिलते हैं नींदों-चैन सनम,
इसी के दम पर सुकून से गरीब सोते हैं.
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: राकेश जाज्वल्य

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