Saturday, January 9, 2010

आओ हम तुम भी चलें, बन के नयी राह कोई...

आओ हम तुम भी चलें, बन के नयी राह कोई।
क्यूँ ना रक्खें, इस ज़माने से जुदा चाह कोई।


हाँ ये सच है के, होता है हर एक शय का नसीब,
किसने रोका है मगर, थाम लो तुम बांह कोई।


वो जो अपना है, मुकर जाता है इक पल में कभी,
कुछ ना होगा, जो तुम भरते ही रहो आह कोई।


रुको ना तुम, नहीं रुकता कोई किसी के लिए,
उड़ो के अब हमें मंजिल की ना परवाह कोई।


तेरी जमीं में सितारों की तरह ख्वाब उगें,
तेरा वजूद मुकम्मल हो बने छांह कोई ।


यूँ ना संभाले रखो, दिन ये उदासी वाले,
रुत बदलती है के बैठा है कही शाह कोई।


तेरी नज़र का हर एक गीत इतर सा महके,
तुझे दुनिया की निगाहों से मिले वाह कोई।

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: राकेश.

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