आज सुबह-सुबह देखा
घर की दीवारों पर
खिल आये है फूल,
कहीं लाल, कहीं पीले,
कहीं नीले- नीले,
ओह .... याद आया...
तुम्हें लिखे ख़त पर
कल छलक गयी थीं
पानी की कुछ बूंदें,
उभर आये थे शब्द,
हलके गीले होकर ,
सहज ही लहरा कर
सुखा दिया था ख़त मैंने
हवा में,
और छिटंक गयी थी
घर की दीवारों पर
स्याही तेरे ख़त की।
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: राकेश
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