कुछ यूँ नज़र आती हैं
बारिश के
पानी की बूंदें,
ठंड के दिनों में,
कि जैसे....
सर्द सफ़ेद घने कोहरों की
चादर बुनने की
मेहनत में,
उभर आया हो
पसीना,
मौसम के
मासूम चेहरे पर.
हलकी सी बारिश
ठंड में,
मौसम की
हलकी ठिठुरन
कुछ और बढा देती है.
सहज ही...
हो जाता है मन,
तेरी बांहों के
कम्बल में आने को.
बदल जाता है
अक्सर,
मेरे दिल और ..
कमरे का
मौसम भी,
कुछ इसी तरह.
ठंड के दिनों में,
सुबह-सुबह
तुम अपनी
गीली जुल्फें,
जोर से
झटका ना करो,
जानां !.
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: राकेश जाज्वल्य.
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