Saturday, July 4, 2009

कोई अतीत उसका/ koi atit uska

कोई अतीत उसका
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उसकी सूनी निगाहें,
खामोश चेहरा और
बरसो से आले पर टंगी
उसकी संदुकची
उत्सुकता जगाती रही थी,
लगता था की जैसे..
कोई अतीत उसका बरसों से
पलकों में ख्वाब की तरह
दुनिया से, मुझ से और खुद से ही
अपने आप को छुपाये हुए है.
क्या हो सकता है उसमे
मै अक्सर सोचता -
किसी सहेली की याद, भैया की डांट,
माँ की कोई सलाह, पिता की चिंता,
घर-परिवार, कोई ना मिला अधिकार,
या फिर कोई अधुरा प्यार.....शायद.
क्या पता?
फिर इक दिन ..
मैंने वह किया जो मुझे नहीं करना था.
मैंने अकेले में
उसकी वह संदुकची खोली और
खोज निकली उसकी इक डायरी जो थी
बड़ी पुरानी,
धड़कते दिल और कांपती उँगलियों से
मैंने उसके पन्ने पलटे और
खुद भी थोडा सा रोया था
क्योंकि ........
उस खाली डायरी में
सिर्फ इक सुखा गुलाब, इक मोर पंख और
इक पन्ना मुडा हुआ सा था.
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: rakesh jajvalya
05.07.09

7 comments:

दिगम्बर नासवा said...

मन की एकांत भावनाओं को सुन्दर तरीके से रखा है आपने............लाजवाब

Anonymous said...

अच्छी प्रस्तुति...

हमारी ज़िंदगी के खालीपन को यदि ये सूखा गुलाब नहीं भर पाता तो यह खालीपन हमेशा के लिए रह जाता है, इसकी कोई क्षतिपूर्ति नहीं...

अच्छा लगा...

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

RAJIV MAHESHWARI said...

अच्छा है अंदाज़े-बयाँ।
सुस्वागतम्।

राजेंद्र माहेश्वरी said...

हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

Ajit Pal Singh Daia said...

rakesh , poems by u are realy beautiful as well as meaningful keep it up.
ajit pal singh
www.poetry-ajit.blogspot.com

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।