कोई अतीत उसका
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उसकी सूनी निगाहें,
खामोश चेहरा और
बरसो से आले पर टंगी
उसकी संदुकची
उत्सुकता जगाती रही थी,
लगता था की जैसे..
कोई अतीत उसका बरसों से
पलकों में ख्वाब की तरह
दुनिया से, मुझ से और खुद से ही
अपने आप को छुपाये हुए है.
क्या हो सकता है उसमे
मै अक्सर सोचता -
किसी सहेली की याद, भैया की डांट,
माँ की कोई सलाह, पिता की चिंता,
घर-परिवार, कोई ना मिला अधिकार,
या फिर कोई अधुरा प्यार.....शायद.
क्या पता?
फिर इक दिन ..
मैंने वह किया जो मुझे नहीं करना था.
मैंने अकेले में
उसकी वह संदुकची खोली और
खोज निकली उसकी इक डायरी जो थी
बड़ी पुरानी,
धड़कते दिल और कांपती उँगलियों से
मैंने उसके पन्ने पलटे और
खुद भी थोडा सा रोया था
क्योंकि ........
उस खाली डायरी में
सिर्फ इक सुखा गुलाब, इक मोर पंख और
इक पन्ना मुडा हुआ सा था.
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: rakesh jajvalya
05.07.09
7 comments:
मन की एकांत भावनाओं को सुन्दर तरीके से रखा है आपने............लाजवाब
अच्छी प्रस्तुति...
हमारी ज़िंदगी के खालीपन को यदि ये सूखा गुलाब नहीं भर पाता तो यह खालीपन हमेशा के लिए रह जाता है, इसकी कोई क्षतिपूर्ति नहीं...
अच्छा लगा...
narayan narayan
अच्छा है अंदाज़े-बयाँ।
सुस्वागतम्।
हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
rakesh , poems by u are realy beautiful as well as meaningful keep it up.
ajit pal singh
www.poetry-ajit.blogspot.com
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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