Monday, June 14, 2010

हलचल..............

फिर आज कुछ हलचल सी है, इन आँखों की झील में,
फिर पैर डुबोये ख़्वाबों ने, पलकों पे बैठकर।

ये ख्वाब हैं या आंसुओं के छलकने का सबब कोई।

* राकेश जाज्वल्य
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