Tuesday, June 1, 2010

चाँद की भी इमेज है मुझ-सी...

बहती आँखों से बयाँ होता है.
दर्द जब दिल की जुबाँ होता है.

जब भी जी चाहे, ख़ुदकुशी कर लो,
भीतर इक गहरा कुआँ होता है.

जब सुलगती है ग़ज़ल सी दिल में,
सर्द मौसम में धुआँ होता है.

अपने चेहरे पे बारहा मुझको,
तेरी आँखों का गुमाँ होता है.

रूह की साँस चलती रहती है,
जिस्म का क्या है, धुआँ होता है.

चाँद की भी इमेज है मुझ-सी,
सच भी कह दे तो, मुआँ होता है.

: राकेश जाज्वल्य
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1 comment:

Dr. C S Changeriya said...

bahut achha laga pad kar

bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/