बेसबब सी बातों पर क्यूँ, बेसबब हम लड़ पड़े थे.
थोड़ी दूरी पर ही जबकि, खुशियों के अवसर खड़े थे.
लाख रूठा ये ज़माना, खुद से पर रूठे ना हम,
थी अगर अड़ियल ये दुनिया, हम भी तो चिकने घड़े थे.
इक-इक दिन अब धीरे-धीरे, उम्र छोटी हो रही है,
जिस दिन हम पैदा हुए थे, उस दिन हम सबसे बड़े थे.
तुमने जो ख्वाबों के जेवर, पहने अपनी आँखों में,
उनमे उम्मीदों के कितने, चमकीले मोती जड़े थे.
चाँद बन के तुम कभी, जानां कभी जाना नहीं,
फूल बन कर चाहे तेरे जुड़े में हम जा पड़े थे.
उम्र भर रिसता है दिल से, टूटे रिश्तों का लहू,
यादों के टुकड़े नुकीले सीने में गहरे गड़े थे.
* राकेश जाज्वल्य
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2 comments:
बहुत खूब!
bhavanao se bharpur behad sunder.
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